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मो.मा.
। सूर्य वा सर्व दीपक हैं ते मार्यों एकरूप ही प्रकारों से तैसें दिव्यध्वनि वा सर्व ग्रंथ हैं ते 1 प्रकाश । मोक्षमार्गकों एकरूप ही प्रकाशै हैं । सो यह भी ग्रंथ मोक्षमार्गकौं प्रकासे है। बहुरि जैसें ।
प्रकाशे भी नेत्ररहित वा नेत्रविकार सहित पुरुष हैं तिनिकू मार्ग सूझता नाहीं तो दीपककै तौ मार्गप्रकाशकपनेका अभाव भया नाही, तैसैं प्रगट कीए भी जे मनुष्य ज्ञान रहित हैं वा मिथ्यात्वादि विकारसहित हैं तिनिकू मोक्षमार्ग सूझता नाहीं तौ ग्रंथकै तौ मोक्षमार्गप्रकाशपनेका अभाव भया नाहीं । ऐसें इस ग्रंथका मोक्षमार्गप्रकाशक ऐसा नाम सार्थक जानना। इहां प्रश्न जो मोक्षमार्गके प्रकाशक पूर्व ग्रंथ तो थे ही, तुम नवीन ग्रंथ काहेकों बनावो हो । ताका समाधान
जैसे बड़े दीपकनिका तौ उद्योत बहुत तैलादिकका साधनते रहै है जिनिकै बहुत | तैलादिककी शक्ति न होइ तिनिकों स्तोक (छोटा) दीपक जोइ दीजिए तो वै उसका साधन राखि | | ताके उद्योतते अपना कार्य करें, तैसें बड़े ग्रंथनिका तौ प्रकाश बहुत ज्ञानादिकका साधनते | रहै है. जिनिकै बहुत ज्ञानादिककी शक्ति नाहीं तिनिक स्तोक ग्रंथ बनाय दीजिए तौ वै वाका | साधन राखि ताके प्रकाशतें अपना कार्य करें। तातै यह स्तोक सुगम ग्रंथ बनाइये है। | बहुरि इहां जो मैं यह ग्रंथ बनाऊँ हूँ सो कषायनितें अपना मान बधावनेकौं वा लोभ साधनेकौं वा यश होनेकौं वा अपनी पद्धति राखनेकों नाहीं बनावौं हों। जिनिकै व्याकरण न्याया
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