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मो.मा. प्रकाश
आत्मशामकी भी प्राप्ति हो है तब सहज ही मोक्षकी प्राप्ति हो है । बहुरि धर्मके अनेक अंग हे तिनिविषै एक ध्यान बिना यातें ऊँचा और धर्मका अंग नाहीं है तातें जिस-तिस प्रकार आगम अभ्यास करना योग्य है । बहुरि इस ग्रंथका तो बांचना सुनना विचारना घना सुगम है कोऊ ठ्याकरणादिकका भी साधन न चाहिए तातें अवश्य याका अभ्यासविषै प्रवर्ती | तुम्हारा कल्यान होइगा। इति श्रीमोक्षमार्गप्रकाशक नाम शास्त्रविषै पीठबंधप्ररूपक प्रथम अधिकार
समाप्त भया ॥१॥
® दोहा । मिथ्याभाव अभावतें, जो प्रगटै निजभाव।
सो जयवंत रहौ सदा, यह ही मोक्षउपाव ॥१॥ अब इस शास्त्रविषै मोक्षमार्गका प्रकाश करिए है। तहां बन्धनतें छूटनेका नाम मोक्ष है । सो इस आत्माकै कर्मका बन्धन है तिस बन्धनकरि आत्मा दुःखी होय रह्या है। बहुरि याकै दुःख दूरि करनेहीका निरन्तर उपाय भी रहै है परन्तु सांचा उपाय पाए बिना दुःख दूरि होता नाहीं अर दुःख सह्या भी जाता नाहीं तातें यह जीव व्याकुल होय रह्या है