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मो.मा.
अर अन्य जीवनिका भला करै है । अर जो कषायबुद्धिकरि उपदेश दे है सो अपना अर अन्य जीवनिका बुरा करै है ऐसा जानना । ऐसें वक्ताका स्वरूप कह्या, अब श्रोताका स्वरूप
प्रकाश
भला होनहार है तातें जिस जीवकै ऐसा विचार आवै मैं कौन हौं मेरा कहा स्वरूप । है यह चरित्र कैसे बनि रह्या है ए मेरै भाव हो हैं तिनिका कहा फल लागैगा जीव दुःखी हो
रहा है सो दुःख दूरि होनेका कहा उपाय है मुझकों इतनी बातनिका ठीककरि किछु मेरा हित हो सो करना ऐसा विचारतें उद्यमवंत भया है । बहुरि इस कार्यकी सिद्धि शास्त्र सुन
नेते होती जानि अतिप्रीतिकरि शास्त्र सुनें है किछु पूछना होइ सो पूछ है बहुरि गुरुनिकर H कह्या अर्थकों अपने अंतरंगविषै वारंवार विचार है बहुरि अपने विचारतें सत्य अर्थनिका निश्चयकरि जो कर्तव्य होय ताका उद्यमी होय है ऐसा तो नवीन श्रोताका स्वरूप जानना। बहुरि जैनधर्मके गाढ़े श्रद्धानी हैं अर नाना शास्त्र सुननेकरि जिनकी बुद्धि निर्मल भई है बहुरि व्यवहार निश्चयादिकका स्वरूप नीकै जानि जिस अर्थकों सुने हैं ताकों यथावत् निश्चय | जानि अवधारै हैं । बहुरि जब प्रश्न उपजै है तब अति विनयवान होय प्रश्न करै हैं अथवा परस्पर अनेक प्रश्नोत्तरकरि वस्तुका निर्णय करै हैं शास्त्राभ्यासविषै अति आसक्त हैं धर्मबुद्धिकरि निंद्यकार्यनिके त्यागी भए हैं ऐसे शास्त्रनिके श्रोता चाहिए । बहुरि श्रोतानिके विशेष
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