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________________ मो.मा. प्रकाश तू तुट्टोस, परमस्थ ण जाणइ मूदोसि ॥ श याका अर्थ- हे पांडे हे पांडे हे पांडे ! तैं कणछोड़ि तुस ही खोटे है अर्थ अ शब्द विषै संतुष्ट है, परमार्थ न जाने है तातैं मूर्ख ही है ऐसा कया है । अर चौदह विद्यानिविषै भी पहले अध्यात्मविद्या प्रधान कही है तातें अध्यात्मरसका रसिया वक्ता है सो जिनधके रहस्यका वक्ता जानना । बहुरि जे बुद्धिऋद्धिके धारक हैं अवधि मनःपर्यय केवलज्ञानके धनी का हैं ते महावका जानने । ऐसें वक्तानिके विशेष गुण जानने । सो इन विशेष गुणनिका धारी वक्ताका संयोग मिलै तौ बहुत ही भला है अर न मिलै तौ श्रद्धानादिक गुणनिके धारी वक्तानिहीके मुखतै शास्त्र सुनना । याप्रकार गुनके धारी मुनि वा श्रावक तिनिके मुखतें। तौ शास्त्र सुनना योग्य है अर पद्धतिबुद्धिकरि वा शास्त्र सुननेके लोभकरि श्रद्धानादि गुणरहित पापी पुरुषनिके मुखतै शास्त्र सुनना उचित नाहीं । उक्तं च तं जिचणपरेण, धम्मो सो यच्च सुगुरुपासम्मि । अह उचिओ सद्धाओ, तस्सुवएसस्सकहगाओ ॥१॥ याका अर्थ — जो जिन आज्ञा माननेविषै सावधान है ताकरि निर्ग्रन्थ सुगुरुही के निकटि धर्म सुनना योग्य है अथवा तिस सुगुरुहीके उपदेशका कहनहारा उचित श्रद्धानी श्रावक | तातें धर्म सुनना योग्य है । ऐसा जो वक्ता धर्म्मबुद्धिकरि उपदेशदाता होइ सो ही अपना 00000 २५
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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