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मो.मा.
प्रकारा
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लक्षण ऐसे हैं । जाकै किछ व्याकरण न्यायादिकका वा बड़े जैन शास्त्रनिका ज्ञान होइ तौ श्रोतापनौ विशेष सोभै है । बहुरि ऐसा भी श्रोता है अर जाकै आत्मज्ञान न भया होय तौ | | उपदेशका मरम समझि सकै नाही, तातै आत्मज्ञानकरि जो स्वरूपका आस्वादी भया है सो |
जिनधर्मके रहस्यका श्रोता है। बहुरि जो अतिशयवंत बुद्धिकरि वा अवधि मनः पर्यय करि | । संयुक्त होय तौ वह महान् श्रोता जानना । ऐसें श्रोतानिके विशेष गुण हैं । ऐसे जिनशा
स्त्रनिके श्रोता चाहिये । बहुरि शास्त्र सुननेतें हमारा भला होगा ऐसी बुद्धिकरि जो शास्त्र | सुनै है परन्तु ज्ञानकी मन्दताकरि विशेष समझे नाही तिनिकै पुण्यबंध हो है , कार्य सिद्ध
होता नाहीं। बहुरि जे कुलवृत्तिकरि वा सहज योग बननेकरि शास्त्र सुने हैं, वा सुने तो हैं । परन्तु किछू अवधारण करते नाही, तिनकै परिणाम अनुसारि कदाचित् पुण्यवन्ध हो है | कदाचित् पापबन्ध हो है । बहुरि जे मद मत्सर भावकरि शास्त्र सुनें है वाद तर्क करनेंहीका जिनका अभिप्राय है । बहुरि जे महंतताके अर्थि वा किसी लोभादिकका प्रयोजनके अर्थि | शास्त्र सुनै हैं । बहुरि जोशास्त्र तो सुनै है .परंतु सुहावता नाहीं ऐसे श्रोतानिके केवल पाप-10 बन्ध ही हो है । ऐसा श्रोतानिका स्वरूप जानना । ऐसे ही यथासंभव सीखना सिखावना |
आदि जिनिकै पाइये तिनिका भी स्वरूप जानना । या प्रकार शास्त्रका अर वक्ता श्रोताका स्वरूप कह्या सो उचित शास्त्रको उचित वक्ता होय बांचना, उचित श्रोता होय सुनना योग्य