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मो.मा.
प्रकाश
ath yount उदय होइ ताकै दंडका निमित्त न बने है । यह निमित्त कैसें बने है सो क-हिये है,
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जे देवादिक हैं ते क्षयोपशम ज्ञानतैं सर्वकौं युगपत् जानि सकते नाहीं तातें मंगल करनेवालेका जानना किसी देवादिककै काहू कालविषै हो है तातें जो तिनिका जानपना न होइ तो कैसें सहाय करें वा दंड दें । अर जानपना होय तब आपकै जो अति मंदकषाय होइ तौ सहाय करनेके वा दंड देनेके परिणाम ही न होंइ । अर तीव्रकषाय होइ तौ धर्मानुराग होइ सके नाहीं । बहुरि मध्य कषायरूप तिस कार्य करनेके परिणाम भये अर अपनी शक्ति नाहीं कहा करें ? ऐसें सहाय करने वा दंड देनैका निमित्त नाहीं बने है। जो अपनी शक्ति होय अर आपके धर्मानुरागरूप मंद कषायका उदयतें तैसे ही परिणाम होंइ अर तिस समय
जीविका धर्म धर्मरूप कर्त्तव्य जानै तब कोई देवादिक किसी धर्मात्माकी सहाय करें या किसी अधर्मीकौं दण्ड दे हैं । ऐसें कार्य होनेका किछू नियम तो है नाहीं । ऐसें समाधान कीया । इहाँ इतना जानना कि सुख होनेकी दुःख होनेकी सहाय करावनेकी दुःख धावनेकी ओ इच्छा है सो कषायमय है तत्काल विषै वा आगामी कालविषै दुःखदायक है । तातें ऐसी इच्छाकू छोरि हम तो एक वीतराग विशेष ज्ञान होनेके अर्थी होइ अरहंतादिककौं नमस्कारादिरूप मंगल कीया है । ऐसें मङ्गलाचरण करि अब सार्थक मोक्षमार्गप्रकाश नाम ग्रंथका उ
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