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________________ मो.मा. प्रकाश సురవరం పోలంపులు వంటివి నిరం* भी सुख देखिए है पापका उदय न देखिए है । भर कोऊ ऐसा मंगल करें है ताकै भी सुख न देखिये है पापका उदय देखिये है तातें पूर्वोक्त मंगलपना कैसे बने ? ताकौं कहिये है, जो जीवनिकै संक्लेश विशुद्धः परिणाम अनेक जातिके हैं सिनिकरि अनेक कालनिविषै। पूर्वे बंधे कर्म एक कालविषै उदय आवै हैं । तातें जैसें जाकै पूर्वे बहुत धनका संचय होइ ताकै | बिनाकुमाए भी धन देखिये अर देणा न देखिए है । अर जाकै पूर्वे ऋण बहुत होय ताकै धन | कुमावत भी देणा देखिये है धन न देखिये है परन्तु विचार कीएतें कुमावना धन होनेहीका | कारण है ऋणका कारण नाहीं । तैसें ही जाकै पूर्वे बहुत पुण्य बंध्या होइ ताकै इहां ऐसा मंगल विना किए भी सुख देखिये है। पापका उदय न देखिए है । बहुरि जाकै पूर्वे बहुत पाप बंध्या होइ ताकै इहां ऐसा मंगल किये भी सुख न देखिये है पापका उदय देखिये है। परन्तु विचार किएतें ऐसा मंगल तौं सुखका ही कारण है पापउदयका कारण नाहीं । ऐसें पूर्वोक्त मं। गलका मंगलपना बने है । बहुरि वह कहै है कि यह भी मानी परंतु जिनशासनके भक्त देवा दिक हैं तिनि तिस मंगल करनेवालेकी सहायता न करी मंगल न करनेवालेको दंड न दीया | सो कौन कारन ? ताका समाधान, जो जीवनिकै सुख-दुःख होनेका कारण अपना कर्मका उदय है ताहीकै अनुसार बाह्य निमित्त बनै है तातें पापका जाकै उदय होइ ताकै सहायताका निमित्त न बने है। अर
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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