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मो.मा.|| द्योत करै हैं । तहां यह ग्रंथ प्रमाण है ऐसी प्रतीति अनायनेके अर्थि पूर्व अनुसारका स्वरूप | प्रकाश निरूपण करै हैं,
अकारादि अक्षर हे ते अनादिनिधन हैं काहूके किए नाही, इनिका आकार लिखना तो अपनी इच्छाके अनुसारि अनेक प्रकार है परन्तु बोलनेमैं आवै हैं ते अक्षर तो सर्वत्र सवंदा ऐसे ही प्रवर्ते हैं सोई कह्या है,-सिद्धो वर्णसमाम्नायः । याका अर्थ यह जो अक्षरनिका | संप्रदाय है सो स्वयंसिद्ध है । बहुरि जिन अक्षरनिकरि निपजे सत्यार्थके प्रकाशक पद तिनके
समूहका नाम श्रुत है सो भी अनादिनिधन है ।जैसे “जीव” ऐसा अनादिनिधन पद है सो | जीवका जनावनहारा है । ऐसें अपने-अपने सत्य अर्थके प्रकाशक अनेक पद तिनका जो समुदाय सो श्रुत जानना । बहुरि जैसें मोती तो स्वयंसिद्ध हैं तिनविर्षे कौऊ थोरे मोतीनके कोऊ | घने मोतीनके, कोऊ किसी प्रकार कोऊ किसी प्रकार गंथिकरि गहना बनावै हैं । तैसें पद तो | स्वयंसिद्ध हैं तिनविर्षे कोऊ थोरे पदनिकों, कोऊ घने पदनिकों कोऊ किसीप्रकार कोऊ किसी-। | प्रकार गुथि ग्रंथ बनावै हैं यहां में भी तिनि सत्यार्थ पदनिकों मेरी बुद्धि अनुसारि ग्रंथि ग्रंथ | | बनाऊँ हूं सो में मेरी मतिकरि कल्पित झूठे अर्थक सूचक पद याविषं नाहीं गूंथं हूं । तातें | | यह ग्रंथ प्रमाण जानना । इहां प्रश्न-जो तिनि पदनिकी परंपराय इस ग्रंथ पर्यंत कैसे प्रवः | | है-ताका समाधान,