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________________ बारणवरण श्रावकाचार ४.९॥ श्लोक-बंभं अबंभ त्यक्तं च, शुद्ध दिष्टि रतो सदा । शुद्ध दशन समं शुद्धं, अबंभ त्यक्त निश्चयं ॥ ४२०॥ अन्वयार्थ-(पमं) ब्रह्मचर्य प्रतिमा सातमी है जहां (अवम त्यक्तं च ) अब्रह्म या कुशीलका त्याग १ किया जावे (सदा शुद्ध विष्टि रतः) सदा शुष सम्यग्दर्शनमें लवलीन रह जावे (शुद्ध दर्शन समं शुद्ध) शुखसम्यग्दर्शनके समान शुद्धता भावोंकी रक्खी जावे (अब त्यक्तं निश्चयं) ब्रह्मके सिवाय अब्रह्म ॐ ध्यान छोडा जावे सो निश्चय ब्रह्मचर्य प्रतिमा है। विशेषार्थ-ब्रह्मचर्य प्रतिमाको धारते हुए प्रावक स्वस्त्रीका भी राग छोड देता है। मन, वचन, कायसे शील धर्म पालता है। शील धर्मके विरोधी निमित्तोंको बचाता है। ब्रह्मचर्य व्रतकी पांचों भावनाओंपर पूरा ध्यान रखता है। यह गृहस्थके राग योग्य वस्त्राभूषण त्याग देता है, उदासीन , कपडे वैराग्य वर्डक पहनता है, सादा वस्त्र, सादा शुद्ध भोजन जहांतक सम्भव हो एक दफे करता है, एकांतमें शयन करता है, यदि घरमें रहे तो अलग कमरे में सोता बैठता है, जहां स्त्रियोंका आगमन व कोलाहल न सुन पडे, अन्यथा घर छोडकर वैराग्यभाव धार देशाटन करता है। व्यवहार ब्रह्मचर्यको भलेप्रकार पालता हुभा निश्चय ब्रह्मचर्यको भी अच्छी तरह पालता है। शुद्ध आत्मीक तत्व जो आप स्वयं ब्रह्म स्वरूप है उनका ध्यान करता है। आत्मीक तत्वके सिवाय और तत्वका राग छोड देता है। अंतरंग बाहर शांत भाव व वैराग्यकी छटाको प्रकाश करता है। ब्रह्मरसका प्यासा होता है। रत्नकरण्डमें कहा है ___ मलबी मलयोनि गलन्मकं पूतगन्धिबीभत्सम् । पश्यन्नंगमनंगाद्विरमति यो ब्रह्मचारी सः ॥ १४३॥ भावार्थ-जो प्रावक अपने शरीरको व स्त्रीके शरीरको मलसे उत्पन्न, मलको उत्पन्न करनेवाला, मलोंको बहानेवाला, दुर्गंध व अशुचिसे भरा हुआ, ग्लानि योग्य विचारता है और काम भावसे विरक्त होता है वह ब्रह्मचारी है। इस प्रतिमामें अभी आरंभका त्याग नहीं है। सातवी प्रतिमाका धारी श्रावक पहलेके सर्व नियम पालता हुआ देशाटन करता हुआ, धर्मका प्रचार सुगमतासे कर सका है। इसे वाहनका त्याग नहीं है। यह मध्यम पात्र में भी मध्यम पात्र है। पदि गृहस्थ भक्तिपूर्वक निमंत्रण करें तो
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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