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________________ वारणसरण ग्रहकी चिंतासे रहित, दो हैं आसन जिमके, (खड्गासन व पद्मासन) तीनों योग हैं, शुद्ध जिपके श्रावकाचार तीनों कालोंकी संध्याओं में अभिवंदन करनेवाला ऐमा व्रती सामायिक प्रतिमाधारी श्रावक है।" सामायिककी विधि यह है कि पूर्व या उत्तरको मुख करके कायोत्सर्ग खडा हो ९ दफे णमोकार मंत्र पढ दंडवत् करे फिर सर्व त्यागकी प्रतिज्ञा जहांतक सामायिक करता हो लेले । फिर उसी दिशामें खडा हो तीन या ९ दफे नमोकार मंत्र पढकर हाथ जोड तीन आवर्त एक शिरोनति करे । जोडे हुए हाथ बाएंसे दाहने लावे यह आवर्त है, उसपर मस्तक झुका यह शिरोनति है। ऐमाही अन्य तीन दिशामें तीन आवर्त व एक शिरोनति करे, फिर भासनसे बैठकर सामायिकपाठ पढ़ें। जाप दे, ध्यान करे, अंतमें कायोत्सर्ग खडा हो, नौ दफे मंत्र पढकर दंडवत् करे। वास्तव में सामायिक ही मोक्षमार्ग है। श्रावकको बडे प्रेमसे तीनों काल आत्मध्यान करना चाहिये व पहली दो प्रतिमाओंके सब नियम पालने चाहिये। ____ श्लोक-आलापं भोजनं गच्छं, श्रुतं शोकं च विभ्रमं । मनो वचन कायं शुद्धं, सामाई स्वात्मचिंतनं ॥ ४०७॥ अन्वयार्थ (सामाई ) सामायिक करनेवाला (माला५) वार्तालाप, (भोजन) भोजन, (गच्छं) गमन (श्रतं) सुनना, (शोकं) शोक (च विभ्रमं ) तथा संदेह (मनो वचन कार्य) व मन वचन कायका हलनचलन इनसे (शुद्ध) रहित हो (स्वात्म चिंतनं ) मात्र अपने शुद्ध आत्माका चितवन करे । विशेषा-सामायिकका अर्थ ही आत्मा सम्बन्धी भाव है। समय आत्माको कहते हैं। इसलिये सामायिकके समय शांत चित्त होमात्र एक अपने आत्माका ही चितवन करे, और कोई चिंता न करे, न किसीसे बातचीतका विचार करे और न पात करे न भोजनकी चिंता करे, न कहीं जाने आनेका विचार करे,न किसीकी बात सुनने में उपयुक्त हो, न शोक करे न कोई संदेहकी बात मनमें लावे । मन, वचन, कायको निश्चल रखकर केवल निजात्मामें उपयोग जोडे । उस समय अपनेको शरीरादिसे रहित परम शुद्ध निर्विकार अनुभव करे। जैसे समुद्र या नदी में स्नान करते हुए उसने गोता लगाते हैं वैसे ही अपने आत्माके यथार्थ स्वरूपको ध्यान में लेकर उसे नदीके समान समझकर
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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