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उसीमें अपने आपको मन करे । सच्ची सुख शांति पानेका उपाय यह सामायिक है जिसको सर्वश्रावकाचार कामों की चिंता छोडकर करे ।
श्लोक-पोषह प्रोषधश्चैव, उपवासं येन क्रीयते ।
सम्यक्तं यस्य शुद्धंच, उपवासं तस्य उच्यते ॥ ४०८॥ अन्वयार्थ (पोषह प्रोषपश्चैव ) पोषह रूप प्रोषध या पर्वके दिन (येन उपवास क्रीयते) जो उपवास किया जावे तथा ( यस्य शुद्धं सम्यकं च) जिसका सम्यग्दर्शन भी शुरहो (तस्य उपवास उच्यते) उसको प्रोषधोपवास प्रतिमा कहते हैं।
विशेषार्थ-दूमरी प्रतिमा अष्टमी व चौदसको उपवासका नियम नहीं था, कभी कोई विशेष कारणसे नहीं भी करता था, या एकासन करता था व अतीचार भी नहीं बचाता था, व आरंभ त्याग नहीं भी करता था। यहां चौथी प्रोषधोपचास प्रतिमामें वह मासमें दो दफे हरएक अष्टमी व चौदसको उत्कृष्ट ६ प्रहरका उपवास करेगा व धर्मध्यानमें समय विताएगा, अतीचार रहित पालेगा । जैसा रत्नकरण्डमें कहा है
चतुराहारविसर्जनमुपवासः प्रोषधः सद्भुक्तिः । स प्रोषधोपवासों यदुपोष्यारम्भमाचरति ॥ १.९॥ पर्वदिनेषु चतुर्वपि मासे मासे स्वशक्तिमनिगुण प्रोषधनियमविधायी प्रणधिपरः प्रोषधानशनः ॥ १०॥
भावार्थ-खाय स्वाय, लेख (चाटने योग्य) पेय चार तरहके आहारका त्याग उपवास है, एक दफे भोजन प्रोषध है, आरम्भ त्यागे सो प्रोषधोपवाम है। एक मासमें चार पर्वी में अपनी शक्तिको न छिपाकर प्रोषधका नियम लेकर धर्मध्यान करे सो प्रोषधोपचास प्रतिमा है।
पहले दिन एक भुक्त तीसरे दिन भुक्त करे, १६ पहर धर्मध्यान करे, गमनागमन छोडे सो उत्कृष्ट है, यदि पहले दिन संध्याको आहारादि त्याग कर तीसरे दिन सबेरे पारणा करे, १२ पहर उपवास करे आरम्भ छोडे सो मध्यम है। यदि आरम्भ पहले दिन रातको न छोड सके व अष्टमी चौदसके सबेरे छोडे तो८ पहरका प्रोषधोपवास है। वसुनंदि प्रावकीचारके अनुसार यह भी विधि है कि मध्यममें १०पहर उत्कृष्टके समान धर्मध्यान करे परन्तु जल रखले, आवश्यक्तापर लेवे। जघन्य यह है कि जलके सिवाय बीच में एक मुक्त भी करे, १६ पहर धर्मध्यान करे। इनमेंसे जैसी अपनी ७ .०॥