SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वारणवरण १५-अपनेसे बेन्द्रियादिका घात होजावे तो अंतराय पाले। मरणादिक व भयानक दुःखई मदनके श्रावकाचार शन्द सुने, अनि लगी सुने, नगरादिमें मारनेका लूटनेका, धर्मात्माके उपसर्गका, मृतक मनुष्यका, कान नाक छेदनेका, चोरादिसे मारे जानेका, लूट जानेका, चांडालके बोलनका, जिनविम्ब जिनमदिरकी अधिनयका, धर्मात्माके अविनयका शब्द सुने तो अंतराय । मनमें यह शंका हो कि यह भोजन मांस तुल्य है व ग्लानिरूप है तो अंतराय, इस तरह अंतराय पाले। यह व्रत प्रतिमाधारी बहा संतोषी होता है। अपने शुखात्माका मनन सामायिक द्वारा भले प्रकार करता है। श्लोक-सामायिक कृतं येन, समसम्पूर्ण साईयं । ऊधं च अधो मध्यं च, मनरोधो स्वास्मचिंतनं ॥ ४०६ ॥ अन्वयार्थ-(येन सामायिकं कृतं) जो सामायिक तीन काल करे सो सामायिक प्रतिमाधारी है (सम सम्पूर्ण सायं ) जो समताभावसे पूर्ण सामायिक करे ( ऊधं च अधो मध्यं च मनरोषो) जो ऊर्ध्वलोक, अधोलोक व मध्य लोक सबसे मनको रोक लेवे (स्वात्म चिंतनं ) तथा अपने आत्माका चितवन करे । विशेषार्थ-यहां तीसरी सामायिक प्रतिमाका कथन है। सामायिक दुसरी प्रतिमामें भी थी, परंतु वहां अभ्यास रूप थी, कभी कोई कारणवश नहीं भी करे। यहां नियमसे प्रात:मध्याह व सायंकाल सामायिक करनी चाहिये सोभी ४८ मिन्ट या दो घडी प्रति समयसे कम नहीं। यदि कोई विशेष लाचारी हो तो ४८ मिनटसे कम अंतर्मुहर्त भी कर सकता है। इस प्रतिमामें अतीचार रहित धिर. तासे सामायिक करनी चाहिये । तीनों लोकमें किसी पदार्थसे राग नहीं करना चाहिये। निश्चयनयसे सर्व द्रव्योंको अपने स्वभावमें देखना चाहिये । व्यवहार दृष्टिको बंद कर देना चाहिये । तब अपना आत्मा भी शुद्ध ही दीखेगा व रागद्वेषका अभाव हो जायगा व परमसमता भाव प्राप्त हो जायगा। सामायिकके समय साधुके समान गृहस्थ श्रावकको भी निर्मोही रहना चाहिये व ध्यानका अभ्यास करना चाहिये । रत्नकरंडमें कहा है चतुरावर्तत्रितयश्चतुःप्रणामस्थितो यथाप्रातः सामयिको हिनिषिद्यस्त्रियोगशुद्धविसंध्यममिवन्दी ॥ १३९॥ भावार्थ-जो चार आवर्तके हैं त्रितय जिसके अर्थात् एक दिशामें तीन आवर्नमा करने' वाला इस तरह १९ है। अर्थात जिसके चार है प्रणाम जिसके, कायोत्सर्ग सहित बाह्याभ्यंतर परि- ॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy