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अतिथि संविभागके ५ अतीचारसचित्त त्यागी श्रावक व मुनिको आहार देते हुए१-सचित्तपर रक्खा हुआ देना सचित्त निक्षेप है। २-सचित्तसे ढका देना सचित्त अभिधान है। ३-दूसरेको दान देनेको कहकर आपन देना परव्यपदेश है। ४-वर्षा भावसे दान देना मात्सर्य है। ५-काल उल्लंघकरके देना कालातिकम है।
समाधिमरणके ५ अतीचार१-अधिक जीनेकी लालसा रखनी जीविताशंसा है। २-जल्दी मरने की इच्छा करनी मरणाशंसा है। 1-मित्रोंसे प्रेम बताना मित्रानुराग है। ४-पिछले सुखोंको याद करना सुखानुबंध है। ५-आगे भोग मिले ऐसा चाहना निदान है।
यह व्रती श्रावक धर्म साधनमें बडा सावधान होता है संतोषी होता है, शुख भोजन मर्यादाका मौन सहित जीमता है जिससे शांत भाव रहे। लालसा न हो व भोजन पर ध्यान रखे तथा अंतरायोंको टालकर भोजन करता है।
ज्ञानानंद निजरस निमिर श्रावकाचारके अनुसार अंतराय इस भांति हैं
१-मदिरा २-मांस ३-गीला हाड ४-काचा चमडा ५-चार अंगुल लोहकी धारा १-पडा पंचेडी मरा हुआ ७-भिष्टा मूत्र ८-चांडालादि । इसको आंखोंसे देख लेवे तो भोजन करते हुए
१-सूखा चमड़ा, २-नख, ३-केश, ४-ऊन, ५-पंख, ६-असंयमी स्त्री या पुरुष, ७-बड़ा पंचेंद्री ॐ तिर्यंच, 4-रितुवंती स्त्री, इनका स्पर्श हो तो अंतराय, ९-छोडी हुई चीजका भोजन, १०-मलमू.४
प्रकी शंका, ११-सरदाका स्पर्शन, .१२-थालीमें बस जंतु मरा निकले, १३-थालीमें बाल निकले,
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