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________________ वारणसरण तीन गुण व्रत-जो पांच अणुव्रतोंके मूल्यको बढा देते हैं इसलिये गुणवत कहलाते हैं। (१) दिग्विरति-दशदिशाओं में जन्म पर्यंतके लिये लौकिक कार्यके हेतु इतनी इतनी दरसे आगे न जाऊँगान चीज मगाऊँगा न भेजूंगा, ऐसी प्रतिज्ञा इच्छाको मिटानेवाली है। (6) देशविरति-जो प्रतिज्ञा गमनागमनकी दिग्विरतिमें जन्म भरके लिये की थी, उसमेंसे प्रयोजनभर मर्यादा रोज सवेरे २४ घण्टेके लिये रखले, शेष स्थानका राग छोड दे सो देशविरति है। (३) अनर्थदण्ड विरति-रखे हुए क्षेत्रके भीतर भी विना प्रयोजन मन, वचन, कायकी प्रवृत्तिको न करें, वे मतलब पाप न करें वे पांच तरहके होते हैं (१) पापोपदेश-दूसरोंको पाप करनेका उपदेश देना। (१) अपध्यान-दसरोका अहित मनमें भावना। (३) हिंसादान-हिंसाकारी बर्डी, ढाल, तलवार आदि किसीको मांगे देना। (४) दु:श्रुति-धर्ममार्गसे हटानेवाली स्त्री, भोजन, आदिकी व शृंगाररसकी कमी करनी व ऐसी पुस्तकोंका पढना व सुनना आदि । (१) प्रमादचर्या-प्रमादसे विचारसे व्यवहार करना, वृथा पानी फेंकना, वृक्ष काटना आदि। चार शिक्षाबत हैं। ये मुनिपदकी शिक्षा देते हैं। (१) सामायिक-शांतभाव चित्तमें लाकर संघरे व शाम ४८मिनिट या थोड़ी देर भी आरमध्यान व समताभाव करना-रागद्वेष छोडकर सम रहना । (२) प्रोषधोपवास-प्रोषध जो अष्टमी चौदस पवाका दिन उस रोज उपवास करना या एकमुक्त करना, धर्मध्यानमें मन लगाना। (३) भोगोपभोग परिमाण-सत्रह नियम विचार लेना जिनका कथन पहले कर चुके हैं। (४) अतिथि संविभाग–अपने लिये बने हुए भोजनमें से अतिथि जो मुनि उनकोयामायिका, १ ब्रह्मचारी, क्षुल्लक आदिको आहारदान देकर फिर भोजन करना। सात शील और पांच अणुव्रत बारहवत कहलाते हैं इनको जो पाले वह बती प्रावक है। ॐ पांच अणुव्रतके पचीस अतीचार पूर्णपने बचावे, सात शीलोंके अतीचारोंके बचानेका यथाशक्ति ५.
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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