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________________ वारावरण श्रावकाच चार कषाय तथा मिथ्यात्व व सम्यक मिथ्यात्वका तो उदय नहीं रहता है किंतु सम्यक प्रकृतिका उदय होता है जिसके उदयसे सम्यकमें कुछ मलीनता रहती है, सम्यक्त बना रहता है। इस सम्प१ कका काल बहुत है। दर्शन प्रतिमावालेको इस प्रकारके आज्ञा सम्पत व वेदक सम्यक्तकी दृढता रखते हुए दर्शन प्रतिमाका आचरण भलेप्रकार पालना चाहिये। मातिज्ञान व श्रुतज्ञानके द्वारा शास्त्रका विचार, मनन, चिंतवन करते रहना चाहिये तथा विवेकसे जगतमें व्यवहार करना चाहिये कभी विचित्तमें न लाना चाहिये न मिथ्यात्व पोषक शास्त्रोंकी संगति करनी चाहिये । किंतु तव विचारके सहकारी शास्त्रोंका मनन करके धर्मध्यान शक्ति बढानी चाहिये तथा धर्मध्यानमें सदा लीन रहना चाहिये। श्लोक-अनेयव्रत कर्तव्यं, तप संजमं च धारणं । दर्शनं शुद्ध न जानते, वृथा सकल विभ्रमः ॥ ३९० ॥ अन्वयार्थ (अनेयत्रत कर्तव्य ) जो अनेक व्रतोंका कर्तव्य करे ( तप संजमं च धारण ) तर तथा संयमको भी धारण करे परन्तु (शुद्ध दर्शनं न जानते ) शुद्ध निश्चय सम्यग्दर्शनको न जाने न अनुमवे (वृथा ) तो उसका ब्रतादि वृथा है (सकल विभ्रमः) सर्व ही विपरीत है, मोक्षमार्ग नहीं है। विशेषार्थ-यहां यह जोर देकर कहा है कि शुद्धास्माका अनुभव करानेवाला यदि शुद्ध सम्पक न हो तो सर्वही चारित्र मिथ्या व संसार वर्डक है, मोक्षका मार्ग नहीं है। कोई श्रावक अपनेको व्यवहारमें बवान समझकर कुदेव, कुगुरू, कुधर्मका सेवन न कर जैन तत्वों को मनन करे, जिनेन्द्रकी भक्ति करे, व्यवहारमें पांच अणुव्रतोंको पाले, उपवास, अनोदर, रसत्याग आदि नाना * प्रकार तप करे तथा इंद्रियसंयम व छ। कायकी दयारूप प्राणिसंयम पाले, व्यवहार चारित्रमें कोई कभी न करे तौभी यदि उसके निश्चय सम्यक नहीं है, जिसके शुद्धारमाके अनुभवका लक्ष्य नहीं है तो उसका यह सब आचरण मोक्षमार्ग नहीं होसका है। वह मोक्षमार्गकी अपेक्षा मिथ्या है या विपरीत है-कुचारित्र है। जहां सर्व ही व्यवहार चारित्रके पालनका हेतु अंतरंग आत्मानुभवरूप ४ चारित्रकी प्राप्ति है, वहां यह सर्व मोक्षमार्गमें निमित्त सहकारी होनेसे व्यवहारनयसे मोक्ष मार्ग कहे जासक्त हैं। सम्यक्तीको यह दृढ निश्चय है कि शुबास्माका अनुभव ही वास्तवमें सम्धक है,
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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