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________________ भारणवरण अन्वयार्थ (शुद्धं सम्यग्दर्शनं ) जब शुद्ध आत्माका अनुभव करानेवाला निश्चय सम्यग्दर्शन प्रगट श्रावकाच होजाता है तब ही (ॐवं कारं च विदते ) ॐ का अनुभव होता है (धर्मध्यानं उत्पाद्यते ) धर्मध्यान पैदा होता है (हियं कारेण दिष्टते) व ह्रीं मंत्रकी सहायतासे आत्माका दर्शन होता है। विशेषार्थ-ॐ मंत्रमें अरहंतादि पांच परमेष्ठी गर्भित हैं उनका स्थूलपने विचार तो मिथ्यादृष्टीके भी होसक्ता है परन्तु उनका व्यवहारनयसे फिर निश्चयनयसे विचार व उनके भीतरसे शुद्ध आत्माको पहचानकर उसके अनुभवकी शक्ति सम्यग्दर्शनके द्वारा ही होसक्ती है। यद्यपि सम्यक्तके विना भी मुनिगण ध्यान लगाते, तपस्या करते, उपवास करते, ईर्यासमिति पालते, जीवोंकी रक्षाका , ध्यान रखते, कठोर वचन नहीं कहते, शास्त्रानुसार सर्व आचरण पालते हैं तथा गृहस्थगण देवपूजा, स्वाध्याय, सामायिक, संयम, गुरुभक्ति व दानादि धर्मके कार्य करते हैं तथापि इन सर्व मुनि व श्रावकली क्रियाको धर्मध्यान सम्यग्दर्शनके विना नहीं कहा जासका । क्योंकि सम्यक्तके उदय विना साधक मुनि च गृहस्थके भीतर किसी कषायका अभिप्राय रहता है । या तो मानवश या मायावश या इंद्रिय सुखके लोभवश या संसार भ्रमणके भयसे धर्मका साधन है-शुखात्माके अनुभवके लिये नहीं है। इसलिये उस सष साधनको धर्मध्यान नहीं कह सक्ते। जहां शुद्धात्मानुभवके अभिवायसे धर्म साधन होता है वहीं धर्मध्यान कहा जाता है। हमें चौवीस तीर्थकर गर्मित हैं। इस मंत्र द्वारा भी तीर्थकरोंके गुणोंका विचार होता है। परन्तु शुद्धात्माका अनुभव तब ही होगा जब सम्यक्त होगा। इस हेतु संसार तारक परमोपकारक सम्यग्दर्शनको बडी चेष्ठाके साथ शुद्ध रखना चाहिये, उसमें कोई दोष नहीं लगाना चाहिये। श्लोक-ॐ वं कारं ह्रींकारं च, श्रींकारं प्रतिपूर्णयं । ध्यानं च शुद्ध ध्यानं च, अनुव्रतं साधं ध्रुवं ।। ३९६ ।। __ अन्वयार्थ-ॐ वं कारं ह्रींकारं च) ॐ मंत्र, ही मंत्र तथा (श्रींकारं प्रतिपूर्णय) श्री मंत्र इन तीन मंत्रोंकी पूर्णता सहित अर्थात् ॐ ह्रीं श्रीं द्वारा (ध्यानं च ) ध्यान करना चाहिये तथा फिर (शुद्ध ध्यानं च ) शुद्ध आत्माके ध्यान में लवलीन होना चाहिये (अनुव्रतं सार्दै ध्रुवं ) ऐसा ध्यान पांच अणुव्रतोंके साथ निश्चलतासे करना योग्य है। ॥२८॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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