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________________ ब्राह्मणवरण ॥ ३८० ॥ विशेषार्थ-तीन मूढता छः अनायतनके त्यागके साथ आठ प्रकारका मद न करे । जाति, कुल, धन, अधिकार, रूप, बल, विद्या व तप इन बातोंकी उत्तमता व अधिकता होने पर भी सम्पती इनका सम्बन्ध क्षणिक व कर्मजनित जानकर इनके संयोगसे अभिमान नहीं करता है। इन आठों मदों से बचकर मार्दव भाव व नम्रता से व्यवहार करता है तथा आठ शंकादि दोष से बचता है । जिनमत में शंका नहीं रखता है व कोई भय मनमें लाकर जिनधर्मकी सेवा नहीं छोड़ता है। कोई प्रकार संसारके विषयभोगों की इच्छा करके धर्म सेवन नहीं करता है। किसीको दुःखी, रोगी, दलिदी देखकर ग्लानि_भाव नहीं लाता है। मूढताईसे कोई धर्मक्रिया नहीं करता है, अपने आत्मीक धर्मको बढ़ाता है, दूसरोंके औगुणों को प्रगट करनेकी आदत नहीं रखता है, धर्म में अपनेको व दूसरोंको दृढ़ रखता है । साधर्मी भाइयोंसे गौवत्स सम प्रेम रखता है तथा धर्मकी प्रभावना करता है । हर प्रकार से उन्नतिका साधन मिलाता है । इस तरह जो आठ अंग न पालें तो ये आठ दोष होजाते हैं । सम्यक्ती २५ दोषोंको भलेप्रकार टालकर सम्पक्तको निर्मल रखता है, यही दर्शनिक श्रावक पहली प्रतिमाके धारीका कर्तव्य है । श्लोक – जे के विमल संपूर्ण, कुज्ञानं त्रिरतो सदा । एतानि संग त्यक्तंति, न किंचिदवि चिंतए ॥ ३९० ॥ अन्वयार्थ – ( जे के विमल संपूर्ण ) जो कोई भी इन पचीस दोषोंसे पूर्ण हैं ( सदा कुज्ञानं त्रिरतः ) च हमेशा कुमति आदि तीन कुज्ञानमें रत हैं ( एतानि संग त्यक्तंति ) इनकी भी संगति नहीं करनी चाहिये (किंचिदपि न चिंतए) कुछ भी चिंतवन न करना चाहिये । विशेषार्थ — जैसे मल लिप्त कपडा शोभता नहीं वैसे मल लिप्त सम्पक्त शोभता नहीं । मल लिप्त ववाले भेट करना, उससे मिलना जुलना, मिलनेवालेको भी मल लिप्त करनेवाला है उसी तरह हरएक सम्यक्तके रक्षकको उचित है कि वह इन ऊपर कथित २५ दोषोंको स्वयं अपने में न लगावे, निर्मल सम्पत रक्खे तथा जो कोई अन्य स्त्री या पुरुष मल सहित हैं, शंकाशील हैं, विषयोंकी आकांक्षावान है, मानी हैं, मूढताईसे कुधर्मको सेते हैं, परम निंदक हैं, धर्मप्रेम रहित हैं, कुसंगतिके धारी हैं तथा मिथ्यात्वकी बुद्धि रखते हैं व मिथ्या शास्त्रोंके व रागवर्द्धक पुस्तकों के पाठी हैं व राग श्रावकाचार ॥१८०॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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