SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावकाचार अभव्य जीव ऐसी सम्हाल नहीं रखता है वह धीरे२ शिथिल अडानी होता हुआ कुमार्गी बन जाता सारनवर और मिथ्यात्वकी कोच में फंसकर नर्क चला जाता है। ॥३७९॥ श्लोक-अज्ञानी मिथ्यासंयुतं, त्यक्तते शुद्ध दृष्टितं । शुद्धात्मा चेतना रूपं, साथ ज्ञानमयं ध्रुवं ।। ३८८ ॥ अन्वयार्थ (अज्ञानी) अज्ञानी जीव या शिथिलज्ञानी जीव (मिथ्यासंयुतं) मिथ्यात्व पोषक संगतिके कारण (शुद्ध दृष्टितं त्यक्तते ) शुद्ध सम्यग्दर्शनको छोड़ बैठता है तथा ( सार्थ ज्ञानमयं ध्रुवं शुद्धात्मा चेतना रूप) यथार्थ ज्ञानमई निश्चल शुद्धास्माके चैतन्यमई स्वभावको भी छोड़ बैठता है। विशेषार्थ-ज्ञानी जीव कुसंगतिके प्रभावसे जरा भी शिथिल हुआ कि श्रद्धानको मलीन कर सक्ता है। तब जहां व्यवहार सम्यक्त बिगड़ा तब निश्चय सम्यक्त भी बिगड़नेका अवसर आजाता है। रागभावकी अधिककता होनेसे शुखात्मानुभवकी रुचि घटती जाती है और यह उपशम या क्षयोपशम सम्यकी जीव अनन्तानुषन्धी तथा मिथ्यात्यके उदयसे मिधात्वी होजाता है। परिणामोंकी विचित्र गति है। इससे बोधिदुर्लभ भावना भानी चाहिये कि जिस रनत्रयका लाभ बड़े ही भाग्यसे व बड़ी ही कठिनतासे मिला है। उस रत्नत्रयका सम्बन्ध बना रहे, वह हाथसे न निकल जावे ऐसी भावना भाते हुए सदाही सम्पत भाव वर्डक संगति में रहना चाहिये। जैसे मदिरा व * मांसत्यागीको व यूत रमण त्यागीको मदिरा व मांसकी व द्यूतकी व इनके सेवनवालोंकी ऐसी संगति बचाना उचित है जिससे वह उन व्यसनों में न उलझ जावे । सम्यक्तका मिलना बड़ा ही दुर्लभ है इससे भले प्रकार रक्षित रखना चाहिये। ___ श्लोक-मदाष्टं संशय अष्टं च, त्यक्तते भव्य आत्मना । शुद्ध पदं ध्रुवं सार्थ, दर्शनं मल मुक्तयं ॥ ३८९॥ अन्वयार्थ (मदाष्टं) आठ मद (संशय भष्टं च) आठ शंकादि दोष इन्हें ( भव्य आत्मना त्यतते) भव्य मात्मा छोडदें क्योंकि (शुद्ध पदं ध्रुवं सार्थ दर्शनं मल मुक्तयं) शुख पद मय निश्चल यथार्थ सम्यग्दर्शन मल रहितही शोभता है।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy