SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ tovil -चौर्यवतकी पांच भावनाएं शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभक्ष्यशुद्धिसधाविसंवादाः पंच ॥ - ॥ पत्-१-शून्य स्थानमें ठहरना, २-छोडे हुए स्थानमें ठहरना, ५-दूसरा ममा करे पहांग ठहरना व आप दूसरेको मानेसे मना न करना, ४-भोजनकी शुचि रखना, अंतरायका कारण होने पर भोजन न कर लेना, ५-साधर्मी भाई व बहनासे झगडा धर्म वस्तुके निमित्त न करना कि यह मेरी या तेरी नहीं है। -स्त्री ब्रह्मचर्य व्रतकी पांच भावनाएं हीरागकथाश्रवणतन्मनोहरागनिरीक्षणपूर्वरतानुसारणवृष्यहरसखशरारंसस्कारत्यामा: पंच॥७-७॥ मर्थात्-१-स्त्रियों में राग बढानेवाली कथाओंको पढना, २-उनके मनोहर अंगका देखना, व भोगों की स्मृति, ४-कामोद्दीपक पदार्थ खाना, ५-अपने शरीरका श्रृंगार करना। परिग्रह त्याग ब्रतकी पांच भावनाएं मनोज्ञामनानेंद्रियविषयरागद्वेषवर्धनानि पंच॥ ८-७॥ अर्थात्-पांचों इन्द्रियोंके भोग्य पदार्थ मनोज्ञ या अमनोज्ञ हों उनमें राग मेष नहीं करना। प्रतीको और भी भावनाएं भानी चाहिये। हिंसादिष्विहामुत्रापायावयदर्शनं ॥ ९-७॥ भावार्थ-ये हिंसादि पांच पाप इस लोक व परलोक नाशकारी व निन्दाकारी हैं। दुःखमेव वा-॥१०-७॥ ये पांच पाप दुःखरूप ही है, दुःखोंके कारण हैं। मैत्रीप्रमोदकाहरण्यमाध्यखानि च सत्वगुणाधिकाविश्यमाना विनयेषु ॥ ११-७॥ अर्थात्-सर्व प्राणियोंपर मैत्रीभाव रहे, २-गुणवानों पर प्रमोदभाव रहे, -दुखियोंपर * ४दयाभाव रहे, ४-विनय रहितों पर माध्यस्थभाव रहे। जगत्कायस्थमावौ वा संवेगवैराग्या। . अर्थात्-जगतका दुःखमय स्वभाव व कायका अशुचि स्वभाव धर्मानुराग व पैराग्यके लिये विचारते रहना चाहिये।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy