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________________ सारणतरण ॥ ३७३ ॥ भावार्थ — जो धन धान्यादि परिग्रहको बिलकुल छोड न सके उसको कम करना योग्य है क्योंकि त्यागरूप ही मोक्षतत्व है । १० प्रकारका परिग्रहका जन्म पर्यंत के लिये नियम करना चाहिये । १- क्षेत्र - जगह कितनी रक्खी, २- वास्तु — अपनी मालकीके कितने मकान रक्खे, ३- हिरण्य-चांदी या रुपये कितने रक्खे, ४ - सुवर्ण - सोना या जवाहरात क्या २ रक्खे, ५-धन- गाय भैंसादि कितने रक्खे, ६ - धान्यअनाज अपने खर्चका एक साथ कितना रक्खूंगा, ७- दासी दासी कितनी रक्खूंगा, ८- दास-दास कितने रक्खूंगा, ९- क्रुध्य – कपडे कितने रक्खूंगा, १०- भांड-वर्तन कितने रखूँगा । इनका प्रमाण जन्म पर्यंत करले । कुल जायदाद कितनेकी रखूंगा यह एक मुष्ट भी प्रमाण करले । जब उतना प्रमाण पूरा होजावे तब आप फिर कमाना छोड दे । अपनी मिलकियत इटाले । पुत्रादि अपनी सम्पत्तिके लिये स्वयं उत्तरदायी है । इन पांच अणुव्रतोंको सरलपने धारण दर्शन प्रतिमा से ही हो जाना चाहिये । इन पांच व्रतोंको दृढताने पालनेके लिये व उनकी वृद्धि के लिये हरएक व्रतकी पांच पांच भावनाएं हैं उनको विचारते रहना चाहिये । ये भावनाएं मुनिके लिये पूर्ण हैं, श्रावकके लिये यथाशक्ति हैं । १- अहिंसा अणुव्रतकी पांच भावनाएँ - वांग मनो गुप्तीर्यादाननिक्षेपण समित्या लोकितपान भोजनानि च ॥ १ ॥ अर्थात् - १- वचन गुप्ति-वचनकी सम्हाल कि हिंसाकारी वचन न बोलूं, १- मनोगुप्ति – मन में हिंसक भाव न लाऊँ, ३- ईर्षा समिति – भागे जमीन देखकर चलूँ, ४-आदान निक्षेपण समितिकोई वस्तु उठाऊँ व धरूं तो देखकर, ५-आलोकित पान भोजन – खानपान देखकर बनाऊं व करूं । २- सत्य अणुव्रतको पांच भावनाएं क्रोध लोभ भीरुत्वा । स्यप्रत्याख्यानान्यनुबीची भाषणं च पंच ॥ ९-७ ॥ अर्थात – १ - क्रोधका त्याग करूं-वश रक्खूं, २-लोभका त्याग करूं, ३ - भीरुता या भयका त्याग करूं, ४ - हास्यका त्याग करूं क्योंकि क्रोध लोभ भय हास्यके कारण असत्य बोला जाता है, ५- अनुधीची भाषण- शास्त्र के अनुसार वचन बोलूं । श्रावकाचार ॥२०३॥१
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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