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________________ सारणतरण ३६६॥ कमका आराधन करना चाहिये (संसार सरनेि ) संसार के मार्ग से (मुक्तस्य ) छूट करके वह (मोक्षगामी ) मोक्षमार्ग पर चलनेवाला है ( न संशयः ) इसमें कोई संशय नहीं 1 विशेषार्थ - निश्चय तथा व्यवहार नयसे ऊपर कहे हुए छहों कमको जो कोई नित्य भक्ति व भावसे सेवन करता है, अपने लौकिक कार्योंकी बहुतायत होनेपर भी बहुत आरंभ काम घंघा होनेपर भी, इनके लिये समय निकालता है वही सच्चा धर्मप्रेमी है । जिस काम के लिये अधिक प्रेम होता है उसके लिये समय अपने आप निकाल लिया जाता है। गृहस्थ श्रावक व्रतोंको प्रतिमारूपसे पालनेका नियम न रखने पर भी बडा ही दृढ श्रद्धावान होता है। जिस आत्मानन्दका एक दफे स्वाद पाचुका है उसीकी वारवार प्राप्तिकी भावनासे यह देवपूजादि छः व्यवहार कार्योंके आलम्बन से शुद्धात्माका मनन करके संसारके मार्गसे हटा हुआ है और मोक्षके मार्ग पर जारहा है। इसके जीवनका ध्येय ही आत्मोन्नति करना है । श्लोक - एततु भावनं कृत्वा, श्रावक सम्यक् दृष्टितं । अव्रतं शुद्ध दृष्टी च, साथं ज्ञान मयं ध्रुवं ॥ ३७७ ॥ अन्वयार्थ - ( एतत्तु भावनं कृत्वा ) इन छः कमौके करनेकी भावना करके ( श्रावक सम्यग्दृष्टितं ) यह श्रावक सम्यक दर्शनका आचरण करता है । (अव्रतं शुद्धदृष्टी च) यद्यपि यह व्रत रहित है तथापि विशुद्ध सम्पष्ट है । (सार्थ ज्ञान मयं ध्रुवं ) यह यथार्थ ज्ञानमई निश्चल परमात्माका ध्यान करनेवाला है । विशेषार्थ - यहांतक ग्रंथकर्ताने मुख्यता से अविरत सम्यकदृष्टीका चारित्र वर्णन किया है । यह धर्मका प्रेमी व संसारसे वैरागी होकर देवपूजादि छः कमकी उन्नतिकी भावना रखता है। तथा आठ मूलगुण पालता है, सात व्यसनों से बचता है, रत्नत्रयकी भावना भाता है, पांच परमेष्ठी की दृढ भक्ति रखता है । जल छानकर पीता है। रात्रिके भोजन त्यागका अभ्यास करता है। कुदेवादिकी भक्ति भूलकर भी नहीं करता है । इनके उत्साह आत्मोन्नतिका रहता है । अप्रत्याख्यानावरण कषायका जबतक उपशम न होजावे तबतक यह पांचवें देश विरत गुणस्थान में नहीं जासक्ता है । तथापि सम्यक दर्शन होनेके पीछे आत्मतत्वकी भावना भाते हुए जितना २ अप्रत्यारूपानावरण कषायका उदय कमकम होता जाता है उतना उतना इसका चारित्र ऊँचा होता जाता है। चारि श्रावकाचार ॥१६६॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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