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________________ श्रावकाचार हैया इसके चारों तरफ दो दो जज और बाकी सब क्षेत्र व सर्व वस्तुका मुझको त्याग है, फिर उसी तारणतरण दिशामें खडे हो कायोत्सर्ग तीन या नौ दफे णमोकार मंत्र पढकर हाथजोडके तीन आवर्त व शिरोन्नति करे । दोनों हाथ जोडे हुए बाएंसे दाइनी तरफ तीन दफे घुमावे असे आवर्त कहते हैं। फिर जोडे हुए हाथ मस्तक झुकाकर स्पर्श करे इसे शिरोनति करे। फिर हाथ जोडेकर खडे ही खडे दाहनी तरफ मुड जावे। इधर भी उसी तरह तीन या नौ दफे णमोकार मंत्र पढकर तीन आवर्त ॐ तथा शिरोनति करे। ऐसा ही मुडते हुए शेष दोनों दिशाओंमें करके पदमासन या अर्द्ध पदमा. सन बैठ जावे। बैठकर पहले कोई संस्कृत या भाषा सामायिक पाठ पढे, फिर जाप देवे, फिर पिंडस्थ पदस्थ आदि ध्यानका अभ्यास करे, बारह भावनाओंको विचारे, निज आत्माका स्वरूप ध्यावे व उसमें एकान होजावे । अन्तमें खडे होकर नौ दफे णमोकार मंत्र पढकर कायोत्सर्ग करके दंडवत् करे। इस विधि से यदि गृहस्थ कमसेकम दोनों संध्याओंमें अभ्यास करे तो धीरे धीरे उसको ध्यानकी सिद्धि होने लगे । वास्तव में निर्मल या शुद्ध तप वही है जो आत्मा अपनी आत्मामें तपे, शुद्धात्मा. नुभव हो, वही तप कर्मकी अविपाक निर्जरा करनेवाला है, परमानन्दका देनेवाला परमोपकारी है। ज्ञानमें रमण करना ही सच्चा तप है।। दान नित्य कर्म । श्लोक-दानं पात्र चिन्तस्य, शुद्ध तत्व रतो सदा । शुद्ध तत्व रतो भावः, पात्र चिंता दानसंयुतं ॥ ३७४ ॥ मन्वयार्थ—(पात्र चिन्तस्य दानं ) पात्रोंकी भक्तिका भाव करना सो दान है ( सदा शुद्ध तत्व रतः) सदा शुद्ध आत्मीक तत्व में रमना भी दान है। (शुद्ध तस्व रतो भावः ) शुद्ध तत्वमें लीन होना शुद्ध या निश्चय दान है सो ( पात्र चिन्ता दान संयुतं) पात्रोंकी चिंता या पात्रोंको दान सहित व्यवहार दान सहित होना योग्य है। विशेषार्थ-छठा कर्म गृहस्थका दान करना है। शुखदान यह है कि आप ही अपने आत्माको आत्मीक रसका आहार दिया जावे । यह शुख या निश्चय दान अपने आत्मामें लवलीनता रूप है। सच्चा पात्र
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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