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________________ तारणतरण श्रावकाचार १४ शयन-सोनेकी शय्या आदि कौन २ रक्ली । १५ आसन-बैठने के आसन कौन २रक्खे । १६ सचित्त-हरी तरकारी फल कौन २ रक्खे। १७ वस्तु संख्या-कुल खाने पीनेकी वस्तुएं कितनी रक्खीं। संयमके दो भेद हैं-पांच इन्द्रिय व मनको अपने आधीन रखके सदा ही उपयोगी कामों में लगाए रखना । वृथाके कार्यों में इनको उलझाना नहीं। उनका ऐसा उपयोग करना कि ये स्वस्थ रहे और धर्म, अर्थ, काम, पुरुषार्थ साधनमें सहायक हो, यह इंद्रिय संयम है। छः कायके प्राणियोंकी दया पालनी प्राणि संयम है। त्रस जंतुओंकी भले कार रक्षा करनी, स्थावरका भी वृथा घात नहीं करना । मिट्टी, पानी, भाग, हवा, वनस्पतिका उपयोग प्रयोजन से अधिक नहीं करना। हरएक काम देखभालके करना जिससे कीडे, मकोडे आदिकी वृथा जान न जाये। पशुओंको सताना नहीं। मानवोंके चित्तको दुखाना नहीं। जो गृहस्थ इन दो प्रकारके संयमका अभ्यास रखते हैं वे मानव* जन्मको सफल करते हैं और आत्माकी उन्नति भलेप्रकार कर सके हैं, श्रावकका धर्म उत्तम प्रकारसे निर्वाह कर सके हैं। समयको वृथा न खोकर समयका सदुपयोग करना भी संयम है। श्लोक-संयम संयम शुद्धं, शुद्ध तत्व प्रकाशकं। नजलं शुद्धं, सुस्नानं संयमवं ॥ ३७२ ॥ अन्वयार्थ-(संयम ) अपने आत्मामें तिष्ठना सो (शुद्ध संयम ) शुद्ध संयम या निश्चय संयम है। यह संयम (शुद्ध तत्व प्रकाशकं ) शुद्ध आत्मीक तत्वको प्रकाश करनेवाला है। यही (शुद्ध ज्ञाननलं तीर्थ ) शुद्ध ज्ञानरुपी जलसे भरा हुआ तीर्थ है अर्थात् समुद्र है ( सुस्नानं ) इसमें भले प्रकार स्नान करना (ध्रुवं संयम ) निश्चय व निश्चल संयम है। विशेषार्थ-इन्द्रिय संयम तथा प्राणि संयम पालना या नित्य प्रति नियम करना या श्रावकका संयम पालना यह सब व्यवहार संयम है। निश्चय या शुद्ध संयम यह है जो मन बचन कायको संयममें लाकर व इद्रियोंकी सर्व इच्छाओंको निरोध कर अपने आत्माके स्वरूप में आप ही तन्मय होजाना। इस तरह संयमका अभ्यास करना शुखात्माका अनुभव करानेवारा है तथा आत्माके कर्म रूपी मलको काटनेवाला है। तथा इसी संयमको तीर्थकी उपमा दी है। जिसमें तिराजाय सो तीर्थ है। तीर्थ नदी या समुद्रको कहते हैं । जगतके लौकिकजन गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा,
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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