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________________ तारणतरण ४३६०॥ स्नान है। चारों अनुयोगोंके ग्रंथोंको पढते हुए आध्यात्मिक साहित्य पर विशेष ध्यान देना चाहिये, शुमा मनन इसहीके द्वारा भले प्रकार होता है । स्वाध्याय के समान कोई || उपकारी उपाय नहीं है । संयम पालन | श्लोक-संयमं संयमं कृत्वा, संयमं दुविधं भवेत् । इन्द्रियाणां मनो नाथः, रक्षणं त्रस (स्थावरं ॥ ३७१ ॥ अन्वयार्थ—( संयमं संयमं कृत्वा ) संघम अपनेको यम नियममें रखने को कहते हैं। (संयमं दुविधं भवेत् ) संघम दो प्रकारका होता है-इंद्रिय संयम व प्राणि संयम । ( इन्द्रियाणां मनो नाथः ) पांच इंद्रियोंको और उनके स्वामी मनको वश रखना इंद्रिय संयम है तथा ( त्रस स्थावरं रक्षणं ) त्रस और स्थावर प्राणियोंकी रक्षा करना प्राणि संयम है । विशेषार्थ — चौथा कर्म गृहस्थका संयम पालना । अपनेको यम नियममें चलाना संयम है। जो कार्य अन्याय व पापमय हैं उनका आजन्म त्याग कर देना चाहिये। जैसे जूभा आदि सात व्यसन तथा अभक्ष्य भोजन । और जो भोग उपभोग आजन्मके लिये छोडे न जासकें उनका गृहस्थको रोज प्रमाण कर लेना चाहिये नीचे लिखे १७ नियमका नित्य विचार करना चाहिये: भोजने षटूसे पौने कुंकुमदि विलेपने । पुष्पें तांबूल गीतेषु नृत्यदौ ब्रह्मचर्यके ॥ वन भूषण वस्त्रोदौ वाहने शर्तेनासैने । सचिवस्तु संख्यादौ प्रमाणं भज प्रत्यहं ॥ १ भोजन कै दफे करूँगा । २ षट्स - दूध, दही, घी, नमक, तेल, मीठा, इनमें से क्या २ त्यागा । ३ पान-भोजन के सिवाय पानी के दफे पीऊँगा । ४ कुंकुमादि विलेपन - तेल चंदन विलेपन कै दफे लगाऊँगा या नहीं । ५ पुष्प फूल घुंगा या नहीं, या के दफे । ६ ताम्बुल - पान खाऊँगा या नहीं यदि खाऊँगा तो कै दफे । ७ गीत-संसारी गीत सुनूँगा या नहीं। ८ नृत्यादौ - नाच देखूँगा या नहीं । ९ ब्रह्मचर्य - आज ब्रह्मचर्य पूर्ण पालूंगा या नहीं । १० स्नान के दफे नहाऊँगा । ११ भूषण - गहने कौन २ पहनूँगा । १२ वस्त्र- कपडे कितने जोड काममें लूंगा । १३ वाइन - सवारी कौन रक्खी या त्यागी । 1 श्रावकाचार ॥३६
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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