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________________ ॥३०॥ (सम्यग्दर्शनमुबम) वह सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिका उद्योग है (सम्यक्तं संपूर्णशुद्धं च) जो निश्चय सम्यग्दर्शन श्रावकाचार शुरु है (ति अर्थ पंचदीप्तय) वह तीनों अर्थ अर्थात् रत्नत्रय स्वरूप है और पांच परमेष्ठीपदका प्रकाशक है। विशेषार्थ-देव शास्त्र गुरु जो परमार्थरूप हैं, जिनका स्वरूप कथन इस ग्रन्थमें बहुतसे स्थलोंपर 3 किया है उनका दृढ अडान रखके उनकी भक्ति करना यही निश्चय सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिका उद्योग करना है। देव शास्त्र गुरुकी भक्ति करनेसे परिणामों में जितनी २ उज्वलता होगी उतनी २ सम्पग्दर्शनके निरोधक अनन्तानुबन्धी चार कषाय और मिथ्यात्व कर्मकी कमी होगी, उनका बल घटता जायगा। इस तरह मनन करते करते एक दिन पांचों प्रकृतियोंका उपशम होकर निश्चय शुख सम्यग्दर्शन पैदा होजायगा । हमें अपना उद्यम चार तरहका रखना चाहिये। (१) श्री जिनेन्द्रदेवकी स्तुति, भक्ति व गुणानुवाद गाना, उनके स्वरूपको देखना, विचारना, उनकी पूजा करनी । (२) जिनवाणीका नित्य प्रति स्वाध्याय करके सात तत्वोंको समझना । (३) अध्यात्म ज्ञाता परम ध्यानके अभ्यासी गुरुओंकी भक्ति करके सम्यग्ज्ञानकी प्राप्ति करना । (४) प्रातःकाल और संध्याकाल कुछ देर एकांतमें बैठकर सामायिक करना, बारह भावनाका विचार करना, आत्मा व अनात्माका भिन्नर स्वरूप भाना। इन चार उपायोंके करनेसे कभी न कभी सम्यक्त होजाना संभव है। जबतक सम्यक्त न होगा तबतक भी परिश्रम वृथा नहीं जायगा। जितना पुण्य बांधोगे वह संसारमें साताको पैदा करेगा, असातासे बचाएगा। निश्चय सम्यग्दर्शन जब उदय होगा तब वहां सम्यग्ज्ञान व सम्यग्चारित्र भी प्रगट होजाता है। ऐसा ही सम्यक्त रत्नत्रयमई स्वात्मानुभवमें जब लिया जाता है तब यही कषायको मंद करता हुभा श्रावकसे साधु, साधुसे आचार्य व उपाध्याय, आचार्य उपाध्यायसे फिर साधु-साधुसे अरहंत, अरहंतसे सिद्ध बना देता है। अतएव पांच उत्तम पदों के प्रकाशका परम्पराय कारण श्रीकी भक्ति है, देव शास्त्र गुरुकी आराधना है। श्लोक-श्रियं सम्यग्दर्शनं, श्रियं कारण उत्पयते । . सर्वं ज्ञानमयं शुद्धं, श्रियं सम्यग्दर्शनं ॥ ३६० ॥ अन्वयार्थ-(श्रियं सम्यग्दर्शनं ) परम ऐश्वर्यशाली महत्वपूर्ण निश्चय सम्यग्दर्शन (श्रियं कारेण उत्पद्यते) ॥१५॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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