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विशेषार्थ-जो गृहस्थ अपना परम कल्याण करना चाहें व मानव जीवनको सफल करना चाहें सारणतरण
उनका कर्तव्य है कि वे चारों अनुयोगोंके ग्रन्थोंको भलेप्रकार स्वाध्याय करें, प्रचलित वर्तमान दि. श्रावकाचार जैन ग्रंथों में ऋषिप्रणीत माननीय नीचे लिखे ग्रन्थ अवश्य पड जाने चाहिये:
प्रथमानुयोग-पदमपुराण, आदिपुराण, हरिवंशपुराण, पार्श्वपुराण, महावीरचरित्र, जम्मूस्वामीचरित्र, जीवंधरचरित्र, धन्यकुमारचरित्र, भविष्यदत्त चरित्र, सुदर्शन सेठ चरित्र, सुक१ माल चरित्र।
करणानुयोग-त्रिलोकसार, गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार, जयधवल, धवल, महाधवल, त्रिलोकप्रज्ञप्ति ।
चरणानुयोग-मूलाचार, आचारसार, भगवती आराधना, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, अमितगति श्रावकाचार, स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा।
द्रव्यानुयोग-द्रव्यसंग्रह, तत्वार्थसूत्र, वृहत् द्रव्यसंग्रह, सर्वार्थसिदिराजवार्तिक, श्लोकVवार्तिक, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, परमात्मप्रकाश, ज्ञानार्णव,समाधिशतक, इष्टोपदेश, भातमीमांसा, प्रमेय रत्नमाला।
चारों अनुयोगोंके कुछ सुगम शास्त्रोंको पढकर जिनवाणीका रहस्य जानना चाहिये फिर स्वाध्यायको बराबर बढाते रहना चाहिये। इस चार अनुयोगरूप शास्त्रकी भाव पूजा व द्रव्य पूजा * मलेप्रकार करनी चाहिये । मुख्य भक्ति उनका ज्ञान प्राप्त करना है। जो संसारभ्रमणसे उदास हैं
और मुक्ति प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिये आगमकी सेवा बहुत ही जरूरी है। शास्त्रज्ञानके ही प्रतापसे भेदविज्ञान होगा। भेदज्ञानसे स्वानुभव होगा-स्वानुभवसे ही केवलज्ञान होगा और यह संसारसे पार होजायगा । श्रुतभक्ति संसार उद्धारक है।
श्लोक-श्रियं सम्यग्दर्शन च, सम्यग्दर्शनमुद्यमं ।
सम्यक्तं सम्पूर्णशुद्धं च, ति अर्थ पंच दीवयं ॥ ३५९॥ अन्वयार्थ-(भियं सम्यग्दर्शन च) श्री अर्थात् केवलज्ञानादि लक्ष्मी उसमें विश्वास अर्थात् देव, ४ उनकी वाणी व उसके अनुसार चलनेवाले गुरु इन तीनमें भलेप्रकार प्रदान करके भाक्त करना