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________________ तारणतरण ॥१४६॥ चारित्र धारना जरूरी है, साधु हो एकान्तमें तिष्ठकर जब आत्माका मनन किया जायगा तब निश्चय चारित्र जो आत्माका अनुभव है सो प्राप्त होगा । विना व्यवहार चारित्रको सहायता के परिणामों में निराकुलताका लाभ होना कठिन है, इसलिये चरणानुयोगमें कहे अनुसार सम्यग्दृष्टी Grant श्रावकका चारित्र ग्यारह प्रतिमारूप व मुनिका चारित्र अट्ठाईस मूलगुण रूप पालते हुए मनको निर्विकल्प करते हुए निश्चय चारित्रको पाना चाहिये । यदि आत्मानुभव रूप निश्चय चारित्र न मिला तो व्यवहार चारित्र मोक्षका साधक न हुआ । यहां लोकमें निश्चय चारित्रकी प्रधानता करके कहा है कि वहां शुद्धात्माका स्वभाव ऐसी एकाग्रता से अनुभव किया जाता है कि तीनों लोकमें सर्वत्र उस ध्याताको वही चिदानंद एक रूप ही दिखता है उसके भीतर से अन्य विचार निकल जाते हैं । अथवा वह ध्याता भावना करता हुआ तीन लोकमें भरे सूक्ष्म तथा स्थूल जीवोंको शुद्ध निश्चय नपसे देखता हुआ, सर्वको परमात्मा देखता हुआ परम समतामई एक रसमें मगन होजाता है. वही आत्मीक चारित्र है । श्लोक - षट् कमलं त्रि ॐ वं च, साद्ध शुद्धधर्म संयुतं । चिद्रूपं रूप दिष्टंते, चरणं पंच दीप्तयं ॥ ३५५ ॥ अन्वयार्थ — (षट् कमलं त्रि ॐ वं च ) छः अक्षरी मंत्र वाले व तीन ॐ सहित कमलके ( सार्द्ध) साथ या सहारे से (शुद्ध धर्म संयुतं ) शुद्ध धर्मध्यान सहित अभ्यास करने से ( चिद्रूपं रूप दिष्टंते) चिदाकार स्वभाव अनुभव में आता है (चरणं पंच दीप्तयं ) सम्यक् चारित्र ही पंच परमेष्ठीका प्रकाशक है । विशेषार्थ - षट्कमलं आदि वाक्य पहले भी आचुके हैं इनका जो अर्थ पहले किया है वही हां कहा जाता है । ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं हा इन अक्षरोंको एक आठ पत्ते के कमलपर जो कमल हृदयस्थानपर हो, इस तरह विराजमान करें कि ॐ को मध्य कमलकी कर्णिका में और पांच पत्तोंपर शेष ५ अथवा शेष तीन पत्तोंपर ॐ सम्यग्दर्शनाय नमः, ॐ सम्यग्ज्ञानाय नमः, ॐ सम्यक्चारित्राय नमः, इस तरहका कमल विचार करके कर्णिकाके व एक एक पत्ते परके एक एक अक्षर पदपर चित रोके, फिर गुणोंका विचार करता जावे । इन सबमें व्यवहार नयसे अरहंत, सिड, आचार्य, उपाध्याय, साधु गर्भित हैं। फिर निश्चय से उनहीके भीतर शुद्धात्माको देखें । इस तरह वारवार श्रावकाचार >>>>>• ॥ १४६ ॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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