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________________ वारणतरण १४५॥ स्वरूप देखना चाहिये । शुद्ध नय भात्माको शुद्ध एकाकार अभेद अपने शुरु गुणोंसे पूर्ण, सिर सम श्रावकाचार परमात्मा रूप झलकाती है । इस दृष्टिसे जब बार बार विचार किया जाता है और कर्मजनित भावोंको व आठ कर्मकी रचनाको व शरीरादिको भिन्न अनुभव किया जाता है-इसी भेदज्ञानके अभ्याससे ही धीरे धीरे अनतानुबन्धी कषाय व मिथ्यात्व कर्मका उपशम होजाता है और शुर सम्यग्दर्शन प्राप्त होजाता है। जिस समय यह निश्चय सम्यक्त पैदा होता है उस समय ही मोक्ष.* मार्गका प्रारंभ व तब ही स्वरूपाचरणचारित्र होता है, स्मात्मानुभव होता है, परमानन्दका लाभ होता है। शुरज्ञानमई यथार्थ आस्मीक तत्व अपनी दृष्टिके सामने द्रव्यदृष्टि से ही रहता है इसलिये व्यवहार या पर्याय दृष्टिसे पर्यायोंको ठीक ठीक समझनेका काम लेना चाहिये तथा स्वात्मा-y नुभवके लिये शुख द्रव्यदृष्टिका आलम्बन लेकर पुरुषार्थ करना चाहिये । जहां स्वानुभव होता है * वहां तो नय सम्बन्धी विकल्प रहता ही नहीं है। करणानुयोगके चिंतवनका यही फल है जो शुद्ध सम्यग्दर्शनका लाभ हो। श्लोक-चरणानुयोग चारित्रं, चिद्रूपं रूप दिष्टते । ऊद्ध अधो च मध्यं च, संपूर्ण ज्ञानमयं ध्रुवं ॥ ३५४ ॥ अन्वयार्थ (चरणानुयोग चारित्रं ) चरणानुयोग चारित्रका वर्णन करता है उसके द्वारा (चिद्रूपं रूप दिष्टते) चैतन्य स्वभाव आत्माका अनुभव होता है जिससे (ऊर्द्व अवो च मध्यं च ) ऊपर नीचे व मध्य में (सम्पूर्ण ज्ञानमयं ध्रुवं ) सर्व तरफ ज्ञानमय निश्चल आत्माका दर्शन होता है। विशेषार्थ-चरणानुयोगमें मुनि व गृहस्थके व्यवहार चारित्रका वर्णन है। यह व्यवहार चारित्र निश्चय चारित्रका निमित्त कारण है। मन वचन कायकी चंचलता ध्यानमें बाधक है। जितना अधिक हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म व परिग्रहके प्रपंच में अनुरक्त रहा जायगा उतना ही अधिक मन वचन कायका विशेष व अविवेकरूप प्रवर्तन होगा। इन पांचों पापोंका त्याग मनके संकल्पोंको मिटाने. वाला है। मनके अनेक विचार हटे कि वचन व कायकी प्रवृत्ति थम जाती है। मनको निश्चलतामें लाने के लिये चिंताओंका अभाव करना चाहिये। ये चिंताएं गृह, स्त्री, पुत्र, कुटम्पादिके निमित्तसे ही अधिक होती हैं इसलिये इनके पूर्ण निवारणके लिये सर्व परिग्रहका त्याग आवश्यक है, साधुका ॥३४५६ ४४
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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