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________________ सारणतरण ॥३३९॥ हेतुसे भिन्न २ महापुरुषोंके व महान महिलाओंके जीवनचरित्र दिखलाए हों, कर्मोंका बंध व फल बताया हो, संसारका नाटक क्षणभंगुर दिखलाया हो, मिथ्यात्सके सेवन से क्या दुर्गति होती है, सम्यक्तके आराधनसे क्या २ सुख व कैसी सुगति होती है यह बताया हो, किन किनने आत्मध्यान करके मोक्ष पाई । मोक्ष प्राप्त आत्माएं किसतरह अनंतकाल तक सुखभोगती हैं ये सब दृष्टांत बताए हों। मोक्षकी सारता व संसारकी असारता कथाओंके द्वारा झलकाई हो, धर्म में रुचि बढाने व असे रुचि हटाने की युक्तिसे कथाएं लिखी गई हों सो प्रथमानुयोग बहुत ही उपयोगी शास्त्र विभाग है। दूसरा करणानुयोग है जिसमें तीन लोककी रचना, कहां२ कौन२ जीव पैदा होते हैं उनकी क्या व्यवस्था है, जीवों के परिणाम कितनी जातिके होते है, उनके कैसे २ कमका बंध होता है, कमकी माप उदय आदि व भावोंके भेद आदिका गुणस्थान व मार्गणाके रूपमें कथन हो, हरएक वस्तुका सूक्ष्म परिणमन जिससे मालूम हो, हरएकका हिसाब समझमें आवे । जैसी कुछ पर्यायें होती हैं व नाश होती है उनकी सर्व चर्चाएँ मालूम पडे सो करणानुयोग है । जिनसे मुनियोंके श्रावकों के बाहरी चारित्र पालनेके नियम मालूम हों, क्या२ व्रत उपवास किसतरह करना चाहिये, क्या क्या अतीचार बचाना चाहिये, श्रावकके आचरणकी ११ श्रेणियों में क्या २ चारित्र पालना चाहिये, साधुओंका चारित्र क्या है, उनको कैसे भिक्षा करना, विहार करना, भाषण करना, किसतरह समय विताना यह सब कथन किया हो वह चरणानुयोग है। जिन शास्त्रों में जीवादि छः द्रव्योंका व सात तत्वोंका स्वरूप दिखलाते हुए आत्मा द्रव्यकी विशेष महिमा बताई हो, शुद्ध निश्चय नघकी मुख्यतासे शुद्ध आत्माका विशेष कथन किया हो, आत्मानुभवकी रीति बताई हो, आत्मोन्नति के मार्ग झलकाए हों, अतीन्द्रिय आनन्द पानेका उपाय समझाया हो, व्यवहार नय व निश्चय नयसे पदार्थको बताकर निश्चय नयके विषय पर आरूढ कराया हो, वीतरागताका विशेष चित्रण जिसमें हो, द्रव्योंकी सूक्ष्मताका विवेचन हो सो सब द्रव्यानुयोग शास्त्र है । इन चारों प्रकारके शास्त्रकी पूजा करते हुए ज्ञान लाभ करना चाहिये । श्लोक- प्रथमानुयोग विंदंते, व्यञ्जन पद शब्दयं । तदर्थं पदशुद्धं च ज्ञानं आत्मालं गुणं ॥ ३४८ ॥ श्रावकाचार ॥१३९॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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