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________________ श्रावबार भ६२५॥ KeverekareeseseKEEEEEEEEEGreet विशेषायं-साधु परमेष्ठीकी मुख्यता मोक्षकी सिद्धि करनेकी है। वे निरंतर व्यवहार रत्नत्रयके द्वारा निश्चय रत्नत्रय मई शुरु आत्माको साधन करते हैं। उनको इन तीनों सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र पदाथोंका भलेप्रकार ज्ञान होता है। उनका ध्येय केवलज्ञान प्राप्ति है। छहे प्रमत्त. गुणस्थानसे पारहवें क्षीणमोह गुणस्थान तक सर्व मुनि साधु हैं। साधु मुनि ही तेरहवें गुणस्थानमें जाकर अरहंत केवली होजाते हैं। आचार्य व उपाध्याय पदके धारी मुनि छठे व सातवें गुणस्थानमें ही होते हैं। जब आगेका साधन करना होता है तब ये मुनि आचार्य व उपाध्याय पदको छोड देते हैं। मात्र स्वयं साधनमें लग जाते हैं। जिनको न तो संघकी रक्षाकी चिंता हैन पठन पाठनकी चिंता है। जो नित्य आत्मध्यानमें व वैराग्यकी भावनामें व बारह प्रकारके तपके साधनमें लगे रहते हैं, कठिन २ तपस्या करते हैं, उपसर्ग परीषद सहते हैं, एकांतवास कर धर्मध्यानकी शक्ति बढाते हैं, फिर उपशम श्रेणी या क्षेपकश्रेणीपर शक्तिके अनुसार आरूढ होते हैं, काँके क्षयका निरंतर उद्यम करते रहते हैं। सामान्य साधुसे बारहवें गुणस्थान तक सबही साधु हैं। उन्होंमेंसे आचार्य व उपाध्याय हो जाते हैं। सर्वका भेष नग्न होता है। पीछी कमंडल या शान रखते हैं, अन्य विग्रहसे रहित हैं। श्लोक-देवं पंच गुणं शुद्धं, पदवी पंच संयुतो। देवं जिनं पण्णतं, साधए शुद्ध दृष्टितं ॥ ३३२॥ अन्वयार्थ-(पदवी पंच संजुतो) अरहंत आदि पांच पदवी सहित (पंच गुणं ) पांच परमेष्ठीको (शुद्ध दव) शुद्ध पूज्यनीय देव (देवं निन) देव जिनेन्द्र (पण्णतं) कहा गया है (शुद्ध दृष्टितं साधए) ये पांचों शुद्ध सम्यग्दर्शनको साध चुके हैं। विशेषार्थ-यद्यपि अरहंत सिद्धको देव और आचार्य, उपाध्याय, साधुको गुरु कहते हैं तथापि ये पांच परमेष्ठी पद पूज्यनीय महान कहे जाते हैं। ये सभी शुद्ध आत्मीक अनुभव करनेवाले शुद्ध सम्यग्दृष्टी हैं, अपनेर यथार्थ गुणों के स्वामी हैं। व्यवहार नयसे ये पांच पद हैं, निश्चयनयसे इन सबमें * एक ही जातिका शुद्धात्मा विराजमान है। ऐसा विचार कर अपने शुद्धात्माका ध्यान मुख्यतासे करना योग्य है।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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