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________________ कारणवरण ४३१२।। TETE मोक्षमार्ग है इसीलिये गृहस्थोंको नित्य प्रति देव पूजा, गुरुभक्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान इन छ कमको नित्य करना चाहिये । श्लोक - देवं देवाधिदेवं च, गुरु ग्रंथ मुक्कं सदा । स्वाध्याय शुद्ध ध्यायंते, संयमं संयमं श्रुतं ॥ ३२१ ॥ तपश्व अप्पसद् भावं, दानं पात्रं च चिंतनं । षट् कर्म जिन प्रोक्तं, सार्धं शुद्ध दृष्टितं ॥ ३२२ ॥ मन्वयार्थे—(देवाधिदेवं च देवं ) इन्द्रादि देवों करके पूज्यनीय वीतराग भगवानको देव मानके पूजे (सदा ग्रंथ मुक्तं गुरु ) सदा ही परिग्रह रहित हो गुरु माने ( शुद्ध स्वाध्याय ध्यायंते ) शुद्ध आत्माका मनन रूपी स्वाध्यायको ध्यावे ( संयमं सयमं श्रुतं ) शास्त्र के कहे प्रमाण मन व इंद्रिय विरोध करके प्रतिज्ञा ले सो संयम है (तपश्य अप्प सद भावं ) आत्माके स्वभावमें तपना सो ही तप है ( दानं पात्रं च चिंतनं ) पात्रों को दान देनेका चितवन करना दान है (जिनप्रोक्तं षट् कर्म ) यह जिनेन्द्र कथित छः कर्म हैं (शुद्ध दृष्टितं सार्धं ) इन सबके साथ शुद्ध सम्यग्दर्शन होना उचित है । विशेषार्थ – इन दो श्लोकों में छहों कर्मको बता दिया है जो शुद्ध षट्कर्म है। जहां शुद्धात्माकी ओर दृष्टि हो, आत्मानुभवकी तरफ प्रेम हो । जहाँ सच्चा सम्यग्दर्शन हो वहीं ही शुद्ध षट्कर्म होते हैं । वीतराग सर्वज्ञ अरहंत और सिद्धकी निरंतर भक्ति करें, जिनको सर्व ही मुनिगण, इन्द्रगण आदि नमन करते हैं । इनकी भक्तिके द्वारा शुद्धात्माका मनन करता रहे, तब ही यह शुद्ध देवपूजा कर्म है । रागद्वेषादि अन्तरंग १४ प्रकार व क्षेत्र धनादि १० प्रकार बाह्य इन २४ प्रकारके परिग्रहसे रहित परम जितेन्द्रिय-सौम्यदृष्टि यथाजात नग्नरूप सहित, आत्मध्वानी ही जैन गुरु हैं । उनको गुरु मानके उनकी सेवा करके उनसे ज्ञानका लाभ लेवे यह शुद्ध गुरुभक्ति है । अनेक प्रका रके शास्त्रोंको पढता हुआ व शुद्धात्मा के मनन करानेवाले ग्रन्थोंको विशेष रूप से पढके आत्माका मनन करना स्वाध्याय है । शुद्धात्माकी दृष्टिकी मुख्यता जिस पठनपाठन में है वही शुद्ध स्वाध्याय | आत्मा के ध्यानके हेतु मनकी एकाग्रता प्राप्त करनेको जो जो भोग उपभोग बाधक हैं उनको Yo ।। ११२*
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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