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________________ डारणवरण ॥३०७॥ आत्माका मनन करते न दूसरोंको उपदेश देते हैं वे भी कुगुरु हैं। उनकी भक्ति भी अशुद्ध कुगुरु भक्ति है । ऐसे कुतुरुओंकी सेवा उन कुगुरुओं का भी बिगाड करनेवाली है व उनके पूजकों का भी बगाड करनेवाली है, क्योंकि यह मूढ भक्ति संसार वर्द्धक है । मिथ्या सामायिक | श्लोक – अनेक पाठ पठनं च वंदना श्रुत भावना | - शुद्धत्व न जानते, सामायिक मिथ्या उच्यते ॥ ३१४ ॥ अन्वयार्थ - ( अनेक पाठ पठनं च ) अनेक पाठोंका पढना ( वंदना श्रुत भावना ) वंदना करनी, शास्त्र की भावना करनी । यदि (शुद्ध तत्वं न जानते ) शुद्ध आत्मकि तत्वका ज्ञान नहीं है तो यह (सामायिक मिथ्या उच्यते ) सामायिक मिथ्या कहलाती है । विशेषार्थ-यहां तीसरे अशुद्ध कर्म स्वाध्यायका कथन है। शास्त्र पढनेका नाम भी स्वाध्याय है तथा अपने आत्माके मननको भी स्वाध्याय कहते हैं। यहां सामायिकको भी स्वाध्यायमें गर्भित करके कहा है कि जो कोई अनेक पाठोंको पढें, शास्त्रों को पढ़ें, तीर्थकरों की बन्दना करे, स्तुति करे, प्रतिक्रमण करे, प्रत्याख्यान करे, कायोत्सर्ग करे, णमोकार मंत्र का जप करे परंतु शुद्ध आत्माका यथार्थ तत्व न जाने, न माने न अनुभव करे तो वह सभी सामायिक नहीं, अशुद्ध स्वाध्याय कर्म है । अथवा जो कोई एकांत नय पोषक व राग द्वेष वर्द्धक शास्त्रों को पढ़ें व विषय भोगोंकी इच्छा से रागवर्द्धक, एकांतपोषक पाठ पढें, व रागी द्वेष देवोंकी आराधनारूप जप करे, ध्यान करे सो भी अशुद्ध स्वाध्याय कर्म है । अशुद्ध स्वाध्याय व सामायिकका फल परिणामों में शांति व वैराग्य व आत्मानुभवकी रुचि उत्पन्न होना न होगा। किंतु कषायों की पुष्टिरूप भाव होगा जो ज्ञानावरणादि कर्मोंका तीव्र बंध करनेवाला होगा इसलिये अशुद्ध स्वाध्याय कर्म त्यागने योग्य है । श्लोक-संयमं अशुद्धं येन, हिंसा जीव विराधनं । संयम शुद्ध न जानते, तत्संयम मिथ्या संयमं ॥ ३९५ ॥ श्रावकाचा ॥१०७
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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