________________
श्रावकाचार
सहायक है। इन उत्तम पात्रोंको नवधाभकिसे दान करना चाहिए । पुरुषार्थसिद्धयुगायमें कहाबारणतरण
संग्रहमुच्चस्थानं पादोदकमर्चनं प्रणामं च । वाक्कायमनःशुद्धिरेषणशुद्धिश्च विधिमाहुः ॥ १६८ ॥
भावार्थ-१-संग्रह अर्थात् अत्र तिष्ठ तिष्ठतिष्ठ, आहार पानी शुद्ध है ऐसा तीनवार कहकर यदि मुनि उधर भाव करें तो उनको आप आगे जाता हुआ भीतर ले जावे। १-फिर उच्च आसनपर पाट आदिपर विराजमान करे, फिर शुर जलसे किसी वर्तनमें उनके पग प्रच्छालन करे, ४ फिर आठ द्रव्योंसे पूर्ण पूजा या अर्घ देवे जैसा समय हो, ५ फिर उनको तीन प्रदक्षिणा देकर नमस्कार करे, ६ मनकी शुद्धि, ७ वचनकी शुधि, ८ कायकी शुद्धि, ९ व आहारकी शुद्धि रक्खे। इस नौ प्रकार विधिसे मुनि दान करना चाहिये । दातारमें सात गुण होना चाहिये
ऐहिकफलानपेक्षा क्षान्तिनिष्कपटतानसूयत्वं । अविषादित्वमुदित्वे निरहंकारित्वमिति हि दातृ गुणाः ॥ १२ ॥
भावार्थ-दातारके ये गुण हैं-१ इस लोकके किसी फल की इच्छा न करे, २क्षमाभाव रक्खेॐ उस समय किसीपर क्रोध न करे, १ कपट रहित हो, ४ इर्षीभाव न करे, ५ विषाद न करे, ६ प्रसन्न ॐ रहे, अहंकार न करे।
गृहस्थी स्वयं भी धर्मसाधक भोजन खाता है व वैसा ही निरोगी आहार मुनिको देता है। * वहीं बताया है कि ऐसा द्रव्य देना चाहिये
रागद्वेषासंयममदुःखभयादिकं न यत्कुरुते । द्रव्यं तदेव देयं मुतपःस्वाध्यायवृद्धिकरम् ॥१७॥ भावार्थ-ऐसा पदार्थ दानमें देना चाहिये जो रागदेष, असंयम दुःख, भय आदिको नहीं उत्पन्न करे तथा उत्तम तप व स्वाध्यायकी वृद्धि सहकारी हो। ऋतुके अनुसार सादा व पौष्टिक भोजन मुनिको देना उचित है। शुद्ध दूध, दालमोडी, चावल बहुत हितकारी है। प्रासुर फल भी योग्य हैं। गरिष्ट मिठाई आदि व पकवानादि न देना ही अच्छा है।
श्लोक-उत्कृष्ठं श्रावकं येन, मध्यपात्रं च उच्यते ।
मतिश्रुतज्ञान संपूर्ण, अवधी भावना कृतं ॥ २६ ॥ अन्वयार्थ (मेन श्रावकं उत्कृष्टं) जो भाई उत्कृष्ट श्रावक हैं उनको (मध्यपात्रं च उच्यते) मध्यम
ingen