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________________ श्रावकाचार ॥२५७॥ ४ च विदंते ) इसीसे वे पाचों ज्ञानोंका प्रकाश करते हैं तथा (स्वात्मादर्शन दर्शनं ) अपने आत्माका दर्शन- रूपी दर्शनको प्राप्त करते हैं। विशेषार्थ-यहां षद् कमल विकारका कोई खुलासा नहीं है इसमें जैसा समझा वैसा हम पहले ही लिख चुके हैं कि एक कमल हृदयस्थानमें आठ पत्तेका विचार किया जाय । बीचमें ॐ लिखके फिर हर पांच पत्तेपर हां ही हूँ हाँ हा लिखे। तीन पत्तोंपर ॐ सम्यग्दर्शनाय नमः ॐ सम्यरज्ञानाय नमः ॐ सम्यक्चारित्राय नमः लिखे और क्रमशः नौ स्थानोंपर ध्यान जमावे और हरएकके द्वारा शुरात्माका स्वरूप विचार जावे व अपने आत्माकी तरफ आजावे अथवा ऐसा भी ध्यान किया जासक्ता है कि इसी आठ पत्तेके कमलके ऊपर बीचमें ॐ विराजमान करके पांच पत्तों पर णमो अरहंताणं, णमो सिडाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहणं लिखें। फिर तीनों पत्तोपर ॐ सम्यग्दर्शनाय नमः ॐ सम्यग्ज्ञानाय नमः ॐ सम्पश्चारित्राय नमः लिखें। और हरएकको भिन्नरकर स्वरूप विचार जावे। यह पदस्थ ध्यानका एक प्रकार है। इससे चित्तकी एकाग्रता होती है, संकल्प-विकल्प हटते हैं, तब ज्ञानावरणीय कर्मका क्षयोपशम विशेष होता है, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान बढता जाता है। इसी ध्यानके बलसे शुद्धात्माका अनुभव रूप आत्मदर्शन होने लगता है। उसके प्रतापसे साधुके अवाधिज्ञान मन:पर्यय ज्ञान तथा अंतमें केवलज्ञानका भी र प्रकाश होजाता है । अरहंत पद पानेका उपाय मात्र आत्मध्यान है जिसे श्री मुनिगण ध्याते हैं वे ही उत्तम पात्र हैं। -अवधि येन संपूर्ण, रिजु विपुलंच दिष्टते। मनपर्यय केवलज्ञान जिनरूपं उत्तमं बुधैः ॥ २५९ ॥ अन्वयार्थ—(येन) जिस उत्तम मुनि चरित्र के द्वारा (संपूर्ण अवधि) परमावधि सर्वावधि ज्ञान (रिजु विपुलं च मनपर्यय ) रिजु व विपुल मनःपर्यय ज्ञान (केवलज्ञानं दिष्टते) और केवलज्ञान प्रकाशित होता है वही (मिनरूपं) जिनेन्द्रका निग्रंथ रूप (बुधैः) आचार्योंके द्वारा (उत्तम) उत्तम कहा गया है। विशेषार्थ-यहां उत्तम पात्र साधु महाराजकी महिमा बताई है कि यथार्थ रत्नत्रयके साधक आस्मध्यानी साधु आत्मध्यानके बलसे परमावधि सर्वावधि पूर्ण अवधिज्ञानको पा लेते हैं। दोनों ॥२५॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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