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________________ वारणतरण श्रावकाचार ॥२५॥ श्लोक-उत्तमं जिनरूवं च, जिन उक्तं समाचरति । ति अर्थ जोयते येन, ऊर्ध अधं च मध्यमं ॥ २५७ ॥ अन्वयार्थ (उत्तम मिनरूवं च) उत्तम पात्र जिनरूपी निग्रंथ साधु हैं जो (मिन उक्तं समाचरति) जिनेन्द्र भगवानकी आज्ञा प्रमाण चारित्रको पालते हैं (येन) जिसने (ति अर्थ मोयते) तीनों तत्व सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्रको अनुभव किया है तथा जो (उर्घ अर्घ च मध्यम ) ऊर्ध्व लोक, अधोलोक व मध्यम लोकका स्वरूप जानते हैं। विशेषार्थ-यहां उत्तम पात्रका स्वरूप कहते हैं। मुनि महाराज उत्तम पात्र हैं। वे जिन आगमके अनुसार अपना चारित्र भलेप्रकार पालते हैं। पांच महाव्रत, पांच समति व तीन गुप्तिके पालक हैं तथा जो निश्चय व्यवहार रत्नत्रयके स्वरूपको यथार्थ जान करके व्यवहार रत्नत्रयको यथायोग्य साधन करते हुए निश्चय रत्नत्रय मई आत्मानुभवके अभ्यासी हैं। जिन्होंने श्रुतज्ञानके द्वारा तीन लोकका स्वरूप जाना है, छः द्रव्योंके गुणपर्यायोंको पहचाना है। सारसमुच्चयमें कहा है संगादिराहिता धीरा रागादिमलवर्जिताः । शांता दांतास्तपोभूषा मुक्तिकांक्षणतत्पराः ॥ १९६ ॥ मनोवाकाययोगेषु प्रणिधानपरायणाः । वृत्ताब्या ध्यानसम्पन्नास्ते पात्रं करुणापराः॥ १९७॥ धृतिभावनया युक्ता शुभभावनयान्विताः । तत्वार्थाहितचेतस्कास्ते पात्रं दातुरुत्तमाः ॥ १९८ ॥ भावार्थ-जो परिग्रहादिसे रहित है, धीर हैं, रागादि मलोंसे वर्जित है, शांत हैं, इंद्रियदमनशील हैं, तप आभूषणके धारी हैं, मोक्षकी भावनामें तत्पर हैं, मन वचन कायकी एकतामें लीन हैं, चारित्रवान हैं. ध्यानी हैं, दयावान हैं, धैर्यवान हैं, शुभ भावनाके कर्ता हैं. तत्वोंके भीतर जिनका चित्त लीन हैं वे ही उत्तम पात्र दातारके लिये दानयोग्य हैं। श्लोक-पट् कमलं त्रि ॐकारं, ध्यानं ध्यायति सदा बुधैः । पंचदीप्तिं च विदंते, स्वात्मादर्शन दर्शनं ॥ २५८ ॥ अन्वयार्थ-(बुधैः सदा षट् कमलं त्रि ॐकार ध्यानं ध्यायति) विद्वान उत्तम पात्र साघुओंके द्वारा सदा छ। बीजाक्षर और तीन ॐको कमलमें स्थापित करके ध्यान का अभ्यास किया जाता है। (पंचदीप्ति
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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