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________________ धारणतरण ॥२४८॥ Dÿÿÿÿÿÿÿ श्लोक- पाखंडी उक्त मिथ्यात्वं, वचनं विश्वास क्रीयते । त्यक्तते शुद्ध दृष्टी च; दर्शनं मल विमुक्तयं ॥ २४८ ॥ अन्वयार्थ—( पाखंडी उक्त मिथ्यात्वं ) पाखंडी भेषी साधुओंके द्वारा कहे हुए मिथ्यात्व पोषक (वचनं ) वचनोंका ( विश्वासं क्रीयते ) विश्वास किये जानेपर (शुद्ध दृष्टि च त्यकते ) शुद्ध आत्मीक दृष्टिका त्याग होजाता है (मल विमुक्तयं दर्शनं ) मल रहित सम्यग्दर्शन नहीं रहता है । विशेषार्थ - जिन शास्त्रोंके रचनेवाले निर्ग्रथ वीतरागी साधु न हों; किन्तु सरागी भेषी एकांती साधु हों उन शास्त्रों में जो उपदेश होगा वह मोक्षमार्ग से विपरीत राग पोषक आत्मानुभव से विपरीत होगा । उन शास्त्रोंको पढनेसे शिथिल श्रद्धावालेका श्रान बिगड सक्ता है तथा ऐसे पाखंडी साधुओंका उपदेश भी सुनना उचित नहीं है क्योंकि वह भी सम्यक् श्रद्धानको जो पक्का नहीं है गिरा सता है। शुद्ध आत्मीक दृष्टि हो सम्यग्दर्शन है। जहां एक आत्मीक आनन्दकी गाढ रुचि पाई जावे, संसार शरीर भोगों से पूर्णतया वैराग्य हो ऐसी रुचि जिन वचनोंके सुनने से जाती रहे उनको न सुनना ही न पढना ही हितकर है । सम्यग्दर्शनके अतीचारोंमें यह बात बता चुके हैं कि कुगुरु और उनके भक्तोंकी संगति करनाअनायतन है, धर्मकी प्राप्तिका ठिकाना न होकर धर्मसे शिथिल करनेवाला है। जैसे अपने पास रत्न हो तो उसकी रक्षा भलेप्रकार करना उचित है उसी तरह बडी कठिनता से प्राप्त जो सम्यग्दर्शन उसको रक्षा भलेप्रकार कर्तव्य है । संगतिका बडा भारी असर होता है। इसलिये सम्यग्दृष्टी आत्मज्ञानी वीतरागी साधुओं की संगति ही करना उचित है । इसी से सम्यक्तको मजबूती प्राप्त होगी व आत्मभावना दृढ होगी व संसारसे वैराग्य बना रहेगा । श्लोक-मदाष्टं मान सम्बंधं, शंकादि अष्ट विमुक्तयं । दर्शने मल नदिष्टंते, शुद्ध दृष्टिं समाचरतु ॥ २४९ ॥ अन्वयार्थ - ( मान सम्बंध मदाष्टं ) मान कषाय सम्बन्धी आठ प्रकारका मद व ( शंकादि अष्ट विमुक्तयं ) व आठ शंकादि दोषसे रहित ( दर्शने मल न दिष्टंते ) सम्यग्दर्शन में कोई भी मैल न दिखलाई पडे ऐसे (शुद्ध दृष्टिं समाचरतु ) शुद्ध सम्यग्दर्शनको आचरण करना उचित है । श्रावकाच ।। २४८ ॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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