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शारणतरण
१२४६॥
रखके साधुपना पालते हैं वैसा ही वे दूसरोंको उपदेश देते हैं। उनके दिलों में काम भोगका लोभ स्वर्ग सम्पदाका मोह उत्पन्न कर देते हैं। ये पाखंडी साधु मायाचारमें फंसे रहते हैं। अपना साधुपना बताकर अंतरंगमें माधु न रहते हुए भी लोगोंसे पूजा करवाते हैं और अपना खानपान आदिका स्वार्थ सिद्ध करते हैं। उनकी प्रति समय यही चेष्ठा रहती है कि हम लोगोंको खुश रखें। उनके दिलोंको राजी रखनेके लिये नाना प्रकार रसीली कथाएं रच रचकर सुनाते हैं। मूढतासे भरा गाना कराते हैं। ऐसे साधु जिनके पास न वैराग्य है न संयम हैन आत्मज्ञान है न मोक्षकी भावना है,
मात्र संसारके बढानेवाले पाषाणके नावके समान हैं, जो आप भी डूबेंगे व दूसरों को भी डुबाऐंगे। है जो अज्ञानी ऐसे पाखंडी साधुओंको सचा गुरु मानके उनके विश्वास में फंस जाते हैं वे स्वयं मिथ्या
स्व पोषक द विषयलम्पटी व परिग्रहके पिपासु बनकर नरक आयुको बांधकर नरक चल जाते हैं। -
श्लोक-पाषंडि वचन विश्वास, समय मिथ्या प्रकाशनं ।
जिनद्रोही दुर्बुद्धि ये, स्थानं तस्य न जायते ॥ २४६ ॥ अन्वयार्थ—(पाषंडी वचन विश्वासं) पाषंडी साधुओंके वचनोंका विश्वास करना (समय मिथ्या प्रकाशन) मिथ्या आगम या मतका प्रकाश करना है (ये निनद्रोही दुर्बुद्धी) जो पाषंडी साधु जिनेन्द्र के अनेकांत मतके शत्रु हैं व मिथ्या दुष्ट बुद्धिको रखनेवाले हैं (तस्य स्थानं न भायते) ऐसे पाषंडी साधुके स्थानमें भी जाना उचित नहीं है।
विशेषार्थ-पाषंडी साधुओंने बहुतसे मिथ्या शास्त्र बना दिये हैं जिनमें मिथ्यात्वको व राग देषको व हिंसाको पोषण किया है, उनके वचनोंपर विश्वास करना कभी उचित नहीं है।
जिनेन्द्रका आगम स्थाबादि नबसे जैसा पदार्थ अनेकांत स्वरूप है वैसा ही झलकानेवाला है तथा ज्ञान वैराग्यका प्रकाश करनेवाला है, आत्माको सुख शांतिके मार्गमें लगानेवाला है। संयमकी दृढता करानवाला है। ऐसे आगमका विरोधी वचन पाखंडी साधुओका होता है, वे एकांतको पुष्ट करते हैं, आत्मीक आनन्दके उपवन में जानेसे रोकते हैं, विषय कषायमें लगा देते हैं इसलिये वे जिनद्रोही हैं तथा उनकी बुद्धि भी सरल मंगलकारी नहीं है, वे दुष्ट बुद्धि रखते हुए आप भी कुमार्गमें चलते हैं और अपने भक्तोंको भी कुमार्गपर चलाते हैं। ऐसे पाखंडी साधुओंके स्थानोंपर
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