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________________ बारणवरण ॥२३ ॥ साक पत्र सब निंद बखान, त्यगि करो जिन आज्ञा मान । कंद शाक फल फूल जु त्यागि, साधारण फलतें दूर भाग॥ इसी कारणसे इस श्रावकाचारके कर्ताने भी अधिक स्थावरकी भी हिंसा जिनसे हो उनके खानेका त्याग आठ मूलगुण धारीके लिये कहा है। अतएव कन्दमूल, शाक, पत्ते, फूल जाति ये सब नहीं लेना चाहिये। जवानको वश करके संयमी होके रहना ही परम हित है। RECECEMERGREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEKLike रत्नत्रयका स्वरूप । श्लोक-दर्शनं ज्ञान चारित्रं, साधं शुद्धात्मा गुणं । व नित्य प्रकाशेन, सार्थ ज्ञानमयं ध्रुवं ॥ २३५॥ अन्वयार्थ-( दर्शनं ज्ञान चारित्रं ) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र (सार्थ ) के साथ (शुद्धास्मा गुण) शुद्धात्माके गुणों के द्वारा (तत्व नित्य प्रकाशेन ) अविनाशी तत्वका प्रकाश होता है। यही तत्व (सार्थ ज्ञानमयं ध्रुवं ) यथार्थ ज्ञानमई निश्चल है।। विशेषार्थ-सम्यग्दृष्टी श्रावकको रत्नत्रय धर्मका पालन भले प्रकार करना चाहिये। यहां बताया है कि ये सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र आत्माके गुण हैं। आत्मामें ही पाए जाते हैं। इसलिये जहां शुद्ध आत्माका तत्व ज्ञानमई निश्चल अनुभवमें आरहा है वहीं मोक्षका मार्ग है।" इरएक श्रावकको इस निश्चय मोक्षमार्गपर अपना लक्ष्य-बिंदु रखना चाहिये । तथा शुद्धात्माके मननकी निरंतर भावना भानी चाहिये। जैसी भावना भाई जाती है वैसा भाव ऊँचा चढता चला जाता है। इस निश्चय रत्नत्रयमई भावका आराधक अविरति सम्यग्दृष्टीसे लेकर हरएक जैनी होता है। इसके लिये अन्य बाहरी साधन मिलाए जाते हैं। रत्नत्रयसे ही मेरी शोभा है, मेरा हित है, मेरा उद्धार है,रत्नत्रय ही मेरा क्रीडावन है, ऐसी भावना भानी चाहिये । तत्वार्थसारमें कहा है ये स्वमावाददृशिज्ञप्तिचर्यारूपक्रियात्मकाः । दर्शनज्ञानचारित्रत्रयमात्मैव तन्मयः ॥ १५॥ स्यात्सम्यक्तज्ञानचारित्ररूपः पर्यायार्थादेशतो मुक्तिमार्गः ।एको ज्ञाता सर्वदेवाद्वितीयः स्याद्रव्यादेशतो मुक्तिमार्गः ॥११॥ भावार्थ-जो स्वभावसे होनेवाली सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्परचारित्र रूपी क्रिया है उन ही रूप इन तीनों रत्नत्रयमें तन्मय आत्मा ही मोक्षमार्ग है। पर्याय या भेदनयसे मोक्षमार्ग
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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