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कारणवरण
IR३३॥
है, बस जंतु पैदा होने लगते हैं। मर्यादाका भोजन लेना बस रक्षाका उपाय है। रसोई साफ शुद्ध प्रकाशवाले स्थानपर बनवानी चाहिये। तथा जो सामग्री रसोई में काममें लीजावे वह जंतु रहित शुद्ध होनी चाहिये । चार बातोंकी शुद्धिको चौका कहते हैं।
द्रव्य शुद्धि-पानी, अन्न, आटा, घी, दूध आदि सर्व मर्यादाका नित्यका देखा हुआ लेना चाहिये । लकडी घुनी न हो, जंतु रहित हो।
क्षेत्र शुद्धि-रसोईका स्थान साफ जंतु रहित हो, भीतें साफ की जांय, छतपर या तो चंदोऊ हो या रोज साफ की जावे। भूमिको नित्य साफ करें। पक्की हो तो पानीसे धोवे, कच्ची हो तो मिहीसे लीपे।
काल शुद्धि-दिनमें मुनिदानके समयके पहले रसोई तैयार करले।
भावशुद्धि-रसोई बनानेवालेके भावोंकी शुद्धि यह हो कि वह दयावान हो, जंतुओंकी रक्षा ॐ करता हुआ रसोई बनावे व प्रेमाल हो। ऐसी भक्तिसे घनावे कि भोजन पानेवाले स्वास्थ्य लाभ करे तथा शरीर शुद्ध वस्त्र सहित हो । ऐसी शुद्ध रसोई शुद्ध स्थानमें ही जीमना हितकारी है। जितना त्रस घात बचेगा उतना मांस दोष टलेगा।
श्लोक-मधुरं मधुरश्चैव, व्यापारं न च दृश्यते ।
मधुरं मिश्रिते येन, दि मुहूर्त सम्मूर्छनं ॥ २३२॥ मन्वयार्थ-(मधुरं ) शहत (मधुरश्चैव ) और दूसरा मीठा इनका (व्यापारं न च दृश्यते ) व्यापार नहीं करना योग्य है (येन मधुरं मिश्रिते) जिस वस्तुमें गीला, मीठा या मधु मिलावेंगे उसमें (द्वि मुहूर्त सम्मूर्छन) चार घडीके पीछे सम्मूर्छन त्रस जंतु पैदा होजायंगे ।
विशेषार्थ-तीन मकारों में मधुको भी नहीं खाना चाहिये, यह मक्खियोंका उगाल है तथा गीले रसमें चार घड़ी पीछे त्रस जंतु सम्मूर्छन पैदा होजाते हैं ऐसा ऊपरके श्लोकसे झलकता है। मधुका व्यापार भी नहीं करना चाहिये तथा गीला मीठा अर्थात् गुडका व्यापार भी न करे। गीले मीठे या गुडमें भी चार घडीमें त्रस जंतु पैदा होंगे व जिसके साथ मधु या गीला मीठा मिलाया जायगा, उसमें इस जंतु चार घडी पीछे पैदा होजायंगे इससे उस रावके खानेकी मनाई
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