SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वारणतरण ॥२३२॥ पैदा हो जायगे फिर उनको गर्म करनेसे मांसका दोष आयगा । दो घडीके भीतर २ बस जंतु नहीं पैदा होते हैं तबतक घी बनानेका रिवाज देश में प्रचलित करना चाहिये । ग्रामीणों को समझा देना चाहिये । वही घी खानेलायक है व उसीका ही व्यापार करना उचित है । सागारधर्मामृत में मांस के अतीचार कहे हैं चर्मस्थमः स्नेहश्व हिंग्वसंहृतचम च । सर्व च भोज्यं व्यापन्नं दोषः स्यादाभिषव्रते ।। ३-१२ ॥ भावार्थ - चमड़े के वर्तनमें रक्खा हुआ जल, घी, तेल आदि- चमड़ेमें रक्खी हुई हींग तथा रस चलित सर्व भोजन मांसका अतीचार है। मर्यादाके भीतरके पदार्थ खाना पीना चाहिये जो मर्यादा पहले कही जा चुकी है। उसके बाहरके पदार्थोंमें त्रस जंतु पैदा होजांयगे । अतएव उन पदार्थों के खानेसे मांसका भी अतीचार होगा व मदिराका भी दोष होगा । दयावान गृहस्थ स्वपर उपकारी होता । अशुद्ध व अभक्ष्य भोजन करनेसे रागकी लम्पटता होती है, परिणाम बिगड़ते हैं व शरीर भी रोगी होता है । सम्यग्दृष्टी जीव जिह्नाका वश करनेवाला रहकर शुद्ध खानपान करनेमें हो संतोष मानता है । श्लोक - दोदारि या महिदुग्धं च, जे नरा भुक्तभोजनं । स्वादं विचलितं येन भुक्तं, मांसस्य दोषनं ॥ २३१ ॥ अन्वयार्थ - ( दोदारिया ) जिनकी दो दाल होती हों । उनको (महि ) दही छाछ (च दुख ) और दूध इनके साथ मिलाकर (जे नरा मुक्त भोजनं ) जो मनुष्य भोजन करते हैं अथवा ( येन स्वादं विचलित भुक्तं ) जिसने स्वाद चलित पदार्थको खाया उसको ( मांसस्य दोषनं ) मांसका दूषण लगता है । विशेषार्थ - द्विदल्ल अन्न मेवाको दही छाछ के साथ खानेका निषेध पहले कर चुके हैं। ऐसेको खाने के साथ ही मुंहकी राय के संयोगसे त्रस जंतु पैदा हो जाते हैं । सागारधर्मामृत में ५-१८ मेंआमगोरससंपृक्तं द्विदल ऐसा वाक्य दिया है जिसका सीधा अर्थ यह होता है कि कच्चे गोरस (दूध, दही या छाछ ) के साथ दो दाल वाली वस्तु मिलानेसे द्विदलका दोष होता है। यदि दूध, या दही या छाछको पका लिया जाये तो दोष नहीं रहता है ऐसा समझ में आता है। जिसका स्वाद विचलित हो जाये ऐसी वस्तुको खाने में भी मांसका दोष आता है क्योंकि वह सडने लगता में श्रावकाचार HRARIE
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy