SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कारणवरण ॥२१२॥ (सदा ) सदा ही (सा) सम्यग्दर्शन के साथ ( व्रतं तप संयमं अनेक गुण ध्रुवं तिष्ठंते ) व्रत, तप, संयम अनेक गुण सदा निश्चय रूप से रह सके हैं। विशेषार्थ - यहां सम्यग्दर्शनका महात्म्य बताया है कि शुद्ध निश्चय सम्यग्दर्शन ही धर्मकी जड है । बुझकी जडके विना वृक्षपर पत्ते शाखा फूल फल कुछ नहीं लग सके हैं उस ही तरह सम्यग्दनिके विना धर्मका कोई भी अन्य अंग नहीं होमका है । जिसकी आत्मा में शुद्धात्मा अनुभव है वही सच्चा सम्प्रर्शन है तथा वही श्रावक व मुनिके व्रत व्रत कहलाते हैं अन्यथा मिथ्या व्रत हैं। सम्यग्दर्शन के साथ ही बारह प्रकारका तप तप है अन्यथा मिथ्या तप है। सम्यग्दर्शनके साथ ही इंद्रिय व प्राण संयम संयम है अन्यथा असंयम है । इनके लिये जितने भी उत्तम गुण हैं उनका गुणपना सम्यग्दर्शन के ही साथ है । दानीका दान व पात्रका पात्रपना सम्यक्त सहित ही प्रशंसनीय । सम्यग्दर्शनको गाढ, अतिगाढ, परमावगाढ करनेवाले हो आत्मज्ञान चारित्रादि गुण होते हैं। योगसार में श्री योगेन्द्राचार्य देव कहते हैं जय तप संगम सीलनिय ए सब्बे अक इच्छ । जामन जाणइ इक्क परु सुद्धउभाव पवित्तु ॥ ११७ ॥ भावार्थ- जबतक कोई शुद्ध पवित्र आत्मीक भावको नहीं जानेगा तबतक उसका ब्रन, तप, संयम, शील ये सब निरर्थक हैं। शुद्ध आत्मीक अनुभव के साथ व्रत तप संयम शील आदि सब ही सफल है। श्लोक - यस्य सम्यक्त हीनस्य, उयं तव व्रत संजमं । सर्वा क्रिया अकार्या च, मूलविना वृक्षं यथा ॥ २०८ ॥ अन्वयार्थ – ( यस्य सम्यक्त हीनस्य ) जो सम्बर: र्शन रहित है उसका (उम्र तब ) कठिन तप तपना (व्रत) व्रत पालना (संजमं ) संयम धारणा (सर्वा क्रिया ) इत्यादि सर्व व्यवहार आचरण ( अकार्याच ) पर्थ है या मोक्षमार्ग नहीं है (मूलविना वृक्षं ) मूलके विना वृक्ष नहीं होसक्ता है । विशेषार्थ – कोई ऐसा मानले कि मूल विना वृक्ष होजायगा तो उसकी पूरी अज्ञानता है। मूल या जड जब होगा तब ही वृक्ष अंकुरित होगा, फूटेगा, बढेगा, पत्र शाखावाला होगा, पुष्प फलसे भार ॥२२२॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy