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________________ वारणतरण Katteller&GRGGEECREGEGELEGREGERMIK बढती चली जाती है। ज्ञान तो आत्मामें परिपूर्ण है परन्तु ज्ञानावरण कर्मका आवरण पड़ा है श्रावकाचार * जिससे प्रगट नहीं है। ध्यानके बलसे जितना जितना आवरण हटता जाता है उतना उतना ज्ञानका प्रकाश षढता जाता है। श्लोक-कुज्ञानं त्रि विनिर्मुक्तं, मिथ्या छाया च त्यक्तयं । ॐ वं ह्रियं श्रियं शुद्धं, शुद्ध ज्ञानं च पंचमं ॥ २०५॥ ____ अन्वयार्थ(कुज्ञानं त्रि विनिर्मुक्तं ) तीन कुज्ञानको छोडकर (मिथ्या छाया च त्यक्तयं) मिथ्यात्वकी ४ छाया भी न रखते हुए (ॐ हिय श्रियं शुद्ध) ॐ ह्रीं श्रीं इन तीन मंत्रोंके द्वारा जो शुद्ध आत्माका अनुभव है वही (शुद्ध पंचम ज्ञानं च) शुद्ध पंचम केवलज्ञानको उत्पन्न करानेवाला है। विशेषार्थ-केवलज्ञान क्षायिकज्ञा कभी न छूटनेवाला ज्ञान आत्माका स्वभाव है। वह ज्ञानावरणीय कर्मके उदयसे प्रकाशमान नहीं है। जब सर्व ज्ञानावरणीय कर्मका क्षय होजाता है तब केवलज्ञान प्रकाशमान होता है। इसका उपाय एक शुद्ध आत्माका निश्चल ध्यान है, जिसको पहले ॐ गुणस्थानों में धर्मध्यान फिर श्रेणीके ऊपर शुक्लध्वान कहते हैं। शुद्धात्माके स्मरण करानेवाले तीन ४ मंत्र पद प्रसिद्ध हैं। ॐ हीं श्रीं इनके द्वारा धर्मध्यानके समय पांच परमेष्ठी व चौवीस तीर्थकर व जनके परम ज्ञानादि ऐश्वर्यका चितवन किया जाता है। इस चितवनके द्वारा जब सरूप धिरता होती है तब धर्मध्यान कहा जाता है। जहां बुद्धिपूर्वक स्वरूप मग्नता या शुद्धोपयोग है, परन्तु जहां अबुद्धिपूर्वक उपयोगकी पलटन हो जाती है वह शुक्लध्धान है। ॐ श्री मंत्रोंके आलम्बन से जैसे धर्मध्यानमें ध्यान किया जाता था वैसे शुक्लध्यानमें इनका आलम्बन है, परन्तु पूर्व अभ्याससे मात्र पलटन होती है। जैसे ॐ से ही में वहां से श्री में बुद्धिपूकि नहीं। जहां धर्मध्यान व शुक्लध्यानको मिथ्यास्व शल्यकी छायासे रहित ध्याया जाता है व जहां कुमति, कुश्रुत, व कुभवधि इन मियाज्ञानोंसे मुक्ति है ऐसा भाव श्रुतज्ञान ही केवलज्ञानका कारण है। लोक-देवं गुरुं धर्म शुद्धं च, शुद्ध तत्व सार्थ ध्रुवं । सम्यग्दृष्टि शुद्धं च, सम्यक्तं सम्यक दृष्टितं ।। २०६ ॥ ॥२१॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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