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________________ वारणतरण ॥२०३॥ सांझ व दोपहर शक्ति एकांत में बैठ ४८ मिनट के लिये या कम यथा समय ध्यानका अभ्यास करना ), १० - प्रोषधोपवाल (अष्टमी व चौदलको उपवास करना ), ११-भोगोपभोग परिमाण ( पांच इंद्रियोंकी भोग्य वस्तुओंका नित्य प्रमाण करना ), १२ - अतिथि संविभाग (पात्रोंकी दान देकर भोजन करना ) | (३) बारह तप - १ - उपवास, २- कनोदर, भूख से कम खाना, ३-वृत्ति परिसंख्धान (कोई प्रतिज्ञा लेकर साधु आहारको जाते हैं, पूरी होनेपर लेते हैं) ४-रस परिश्याग (दूध, दही, घी, तेल, नमक मीठा इनमें से एक या अनेक रसोंका त्यागना ) ५ - विविक शय्यासन - ( एकांत में सोना बैठना ), ६- कायक्लेश ( शरीरका सुखियापन मेटनेको कठिन स्थानोंपर तप करना, ७ - प्रायश्चित्त (कोई दोष लगने पर दंड लेकर शुद्ध होना), ८ - विनय (धर्म व धर्मात्माओंका आदर करना), ९ - वैयावृत्य (रोगी, दुःखी, मांदे, धर्मात्मा भाइयों व बहिनों की सेवा करनी), १० - स्वाध्याय (शास्त्रों को पढना व विचारना), ११ - व्युत्सर्ग (शरीरादि से ममत्व त्यागना), १२-ध्यान (आत्मध्यानका अभ्यास करना) । ( ४ ) समताभाव - राग द्वेष छोडकर समताभाव रखनेका अभ्यास करना । (५) ग्यारह प्रतिमा-ये ११ श्रावककी श्रेणियां हैं। १-दर्शन, २- व्रत, ३ - सामायिक, ४प्रोषधोपवास, ५- सचित्त त्याग, ६ - रात्रि भोजन त्याग, ७ - ब्रह्मचर्य, ८- आरम्भ त्याग, ९ - परिग्रह त्याग, १० - अनुमति त्याग, ११ उद्दिष्ट त्याग, इनका कथन आगे आपगा । (६) चार प्रकारका दान - आहार, औषधि, अभय, विद्या । (७) जल गालन - पानी छानकर पीना व व्यवहार करना । (८) अणत्थमिय-रात्रिको भोजन न करना । ( ९ ) तीन सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्र - चारित्र में १३ प्रकार मुनिका चारित्र इस भांति पांच महाव्रत -- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व परिग्रहका स्याग । पांच समिति – ईर्ष्या (चार हाथ भूमि आगे देखकर चलना), २-भाषा-(शुद्ध वाणी बोलना ) ३- एषणा (शुद्ध भोजन श्रावक दत्त लेना ) ४-आदान निक्षेपण ( देखकर रखना उठाना ) ५-प्रतिछापना (मल मूत्र देखकर निर्जंतु भूमिपर करना ) । श्रावकाचार **** ॥१०३॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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