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________________ वारणतरणY जासके हैं। अविरत सम्यग्दर्शनमें क्षायिक सम्यग्दर्शनके धारी उत्तम हैं। उपशम सम्यक्तका धारी ४ श्रावकाचार ॥२०॥ ॐ मध्यम है। क्षयोपशम सम्यक्तका धारी जघन्य है। मध्यम लिंग श्रावको पहिली प्रतिमासे छठी तक जघन्य है, सातवींसे ९मी तक मध्यम है व १० मी व ११ मी प्रतिमा धारी उत्तम है। उनमेंसे श्रेष्ठ ऐलक मात्र एक लंगोरधारी है, क्षुल्लक एक लंगोट व एक चद्दरधारी उससे नीचे हैं। जिनरुपधारी उत्तम लिंगमें तीर्थकर उत्तम हैं, ऋद्धिधारी ऋषि मध्यम हैं, सामान्य साधु जघन्य हैं। श्रेपन क्रियाएं। गुणवय तव सम पडिमा, दाणं नक गालणं च अणत्यमियं । दसण णाण चरित, किरिया तेवण्ण साक्या भणिया ॥ (दौलतरामकृत क्रियाकोष ) आठ मूलगुण+बारह बत+बारह तप+समताभाव+ग्यारह मतिमा+चार प्रकारका दान+जल गालना+रात्रिको न खाना+रत्नत्रय धर्म तीन सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र=५३ त्रेपण क्रियाएं इस तरह जाननी। इनमें रत्नत्रय धर्म तथा चारह तप व समताभाव उत्तम लिंग साधुकी मुख्य क्रियाएँ हैं श्रावककी गौण हैं । दोष सर्व श्रावकों के लिये मुख्य हैं। (१) आठ मूलगुण-मदिरा, मांस, मधु व पांच फल जिनमें अस होते हैं व होनेकी संभावना है जैसे बड फल, पीपल फल, गूलर फल, पाकर फल, अंजीर फल । . (२) बारह व्रत-(श्रावकके) १-अहिंसा अणुव्रत (संकल्पी घस हिंसाका त्याग), २सत्य अणुव्रत, ३-अचौर्य अणुव्रत, ४-ब्रह्मचर्य अणुव्रत (स्वस्त्रीमें संतोष), ५-परिग्रहका प्रमाण (सम्पत्तिका आजन्म प्रमाण कर लेना), ६-दिग्विरति (जन्म पर्यत लौकिक कार्यों के लिये १० दिशाॐ ओंमें जानेकी मर्यादा करना ), ७-देशविरति (जो मर्यादा जन्म पर्यंतके लिये दिशाओंकी की हो उसमेंसे घटाकर एक दिन आदिके लिये करना), ८-अनर्थदंड विरति (व्यर्थके पाप करना जैसे पापका उपदेश, अपध्यान (खोटा विचार), हिंसाकारी वस्तुका दान, दुःश्रुति (खोटी कथाओंको पढना सुनना) प्रमादचर्या (आलस्यसे व्यवहार, अधिक जल आदि फेंकना), ९-सामायिक (सवेरे व ॥१९॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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