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________________ वारणवरण ॥१९॥ चिद्रूपं सुय चिदरूपं, धर्मध्यानं च निश्चयं । मिथ्यात्व रागमुक्तस्य, अमलं निर्मलं ध्रुवं ॥ १८६ ॥ रूपस्थं अर्हत् रूपेण, ह्रींकारेण दिष्टते। ॐकारस्य ऊर्ध्वस्य, शुद्धं ऊर्ध्वमयं ध्रुवं ॥ १८७॥ अन्वयार्थ-(रूपस्थं ) रूपस्थ ध्यानमें यह विचारे कि (सर्व चिद्रूपं ) सर्व चैतन्यका स्वभाव अर्हत् ४ भगवानकी आत्मामें (अषो ऊध्वं च मध्ययं) नीचे ऊपर मध्य सर्व ठौर है (शुद्धतत्वे स्थितीमत्वा) वे अईत भगवान शुद्ध आत्मधर्ममें लीन हैं (हींकारेन) ही बीजाक्षरसे (जोइतं ) देखने योग्य हैं। (चिपं) चैतन्यका स्वभाव (सुय चिद्रूप) श्रुतज्ञानके द्वारा जाना हुआ चैतन्यका रूप है। (च निश्चयं धर्मध्यानं ) व यही निश्चय धर्मध्यान है। (मिथ्यात्व रागमुक्तस्य) जिसके ऐसा ध्यान होता है वह मिथ्यात्व व रागादि भावोंसे मुक्त होजाता है उसके ध्यानमें (अमलं) मल रहित (निर्मल) निर्मल शुद्ध (ध्रुवं) अविनाशी ४ आत्मतत्व है। (रूपस्थं) यह रूपस्थ ध्यान (महंत रूपेण ) अईत् भगवानके स्वरूपके द्वारा होता है। (हींकारेण ) ही बीजाक्षरके द्वारा (दिष्टते) दिखलाई पडता है (ॐकारस्य ऊर्च ) ॐ के ऊपर जो विरा-४ जित है वह (शुद्ध) शुद्ध आत्मा (ऊध्र्वमयं) सबसे श्रेष्ठ व (ध्रुव) अविनाशी है ऐसा ध्यानमें झलकता है। विशेषार्थ-यहां तीसरे रूपस्थ ध्यानका स्वरूप है। रूपस्थ ध्यानमें श्री अरहंत भगवानका स्वरूप ध्यानमें लेकर शुद्धात्माकी तरफ लक्ष्य देना चाहिये। पहले तो अरहंत भगवानको समवसरण में बारह सभाओं के साथ विचार करे। श्री मंडपके भीतर १२ समाओं में चार प्रकारकी देवियां चार सभाओं में, चार प्रकारके देव चार सभाओंमें, एक सभामें मुनि, एक सभामें आर्जिका, एक सभामें मानव, एक सभामें पशु इस तरह भगवानको शांतरूप बैठे हुए सोचे । इन्द्रादि देव व बडे चक्रवर्ती आदिक भगवानकी पूजा व स्तुति कर रहे हैं ऐसा देखे, फिर यह देखे कि अरहंत भगवान परम शुद्ध सप्त धातुसे रहित अंतरीक्ष पदमासन ध्यानाकार विराजमान हैं, परम गंभीर हैं, इंद्रियोंके ॐ विजयी हैं, अद्यान्मीलित नेत्रोंसे अंतरंग तत्वको देख रहे हैं, परम वीतराग हैं, सर्वज्ञ हैं, जिनके , ज्ञान दर्पणमें सर्व लोकालोक प्रकाशमान है, जो परमानन्दमें मग्न हैं। सर्व इच्छासे शून्य हैं, कृतकृत्य
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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