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________________ वारणतरण १७१॥ उसका जीवन ही मायाचारीके विकल्पोंमें वीतता है। रातदिन यही विचार किया करता है। ऐसा मूर्ख प्राणी यह नहीं देखता है कि जिस धनके लिये मैं दूसरोंको ठगता हूं वह धन छोडकर चला जाना पडेगा । तथा इससे जो घोर पाप कर्म बांधा जारहा है उसका कटुक फल प्राप्त होगा। जैसे उलूक सूर्यको नहीं देखता है, दिनको रात्रि समझता है वैसे ही अज्ञानी मायाचारी धर्म व परलो. ककी ओर रहिनहीं करता है। मात्र क्षणिक स्वार्थमें ही लिप्त हो माया ही प्रसन्न हुआ करता है। श्लोक-माया आनंद संयुक्तं, अनृतं अचेत भावनं । मनवचनकाय कर्तव्ये, कुबुद्धी विश्वास दारुणं ॥ १६४ ॥ मन्वयार्थ-(माया आनन्द संयुक्त ) मायाचारके आनंदमें भरपूर वह अज्ञानी ( अनृतं ) मिथ्यात व (परेत) अज्ञानकी (भावनं ) भावना किया करता है। (मनवचनकाय कर्तव्ये ) मन, वचन, कायके करने योग्य व्यवहारमें (कुबुद्धी) खोटी बुद्धि रखता हुआ ( दारुगं विश्वास ) तीव्र विश्वास रखता है। विशेषार्थ-मायानंदी जीव मिध्यादर्शन व मिथ्याज्ञानकी निरन्तर भावना रखता है। आत्मीक तस्वस विरुद्ध जो संसार तत्व है उसी में तन्मय रहता है, विषयोंकी लम्पटना व मिथ्यात्व वर्धक देव, कुगुरु, कुधर्मकी सेवा व मिथ्याज्ञान वर्द्धक ग्रन्थोंका आराधन किया करता है। उसकी भावना यही रहा करती है कि किसी तरह अपना मतलब सिद्ध करूं। कदाचित् वह जिनेंद्र प्रणीत देव, गुरु, धर्मकी भी भाक्ति करता है व जिनवाणीका भी मन लगाकर अभ्यास करता है, परन्तु माया शल्यके कारण उस मिथ्यात्वीका उद्देश्य आत्मकल्याण न होकर स्वार्थ साधन होता है, वह इस तरह कि मैं अपने बाहरी धर्म साधनका प्रभाव, देखनेवाली जनतापर डालकर उनकी प्रतीतिमें यह विश्वास जमादं कि वे मुझे धर्मात्मा मानने लगें फिर मैं उनसे अपना लौकिक स्वार्थ सिद्ध करूं। ऐसी मिथ्या वासनासे अपना सर्व धार्मिक कृत्य अधार्मिक बना देता है। तथा वह अपने मायाचारके फैलाने में तीन विश्वास रखता है, बडी श्रद्धासे मायाकी जाल फैलाता है और मन, वचन, कायका कुटिल व्यवहार करता है। उनके मन में यह श्रद्धा मिश्याज्ञानके कारणसे जम जाती है कि मेरी कुटिलताको कोई जान नहीं सका है, मैं ऐसा चतुरहूँ कि सर्वकी आंखों में धूल डालकर, अपना १ स्वार्थ सिद्ध कर सका हूँ। इस तरह अपने कपटके व्यवहारमें घोर अरान रखता हुआ रातदिन ॥७॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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