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________________ तृष्णामें ही तडफडाते रहते हैं-चाहकी दाहमें ही जलते रहते हैं-उनको सत्य धर्मका लाभ होना बहुत बारणतरण ही दुर्लभ होजाता है। इसी लिये सुभाषितरत्नसंदोहमें कहते हैं१३२॥ करोति दोषं न तमत्र केशरी न दन्दशूको न करी न भूमिपः । अतीव रुष्टो न च शत्रुरुद्धतो यमुग्रमिथ्यात्वरिपुः शरीरिणां ॥११॥ भावार्थ-इस जगतमें अति भयानक मिथ्यात्वरूपी शत्रु शरीरधारी प्राणियोंको जैसा दुःख देता है व जैसा बुरा करता है वैसा बुरा तो अतिशय क्रोध आया हुआ न तो सिंह करता है न नाग करता है, न हाथी करता है, न राजा करता है और न कोई दुष्ट शत्रु ही करता है। मिथ्यात्वके समान कोई शत्रु नहीं है जो अनेक जन्मों में कष्टप्रद होता हो। ___ श्लोक-पारधी पासि जन्मस्य, अधर्म पासि अनंतयं । जन्म जन्मं च दुष्ठं च, प्रापितं दुःखदारुणं ॥ १२५ ॥ अन्वयार्थ-(पारधी) शिकारी तो (जन्मस्य पासि ) एक जन्मकी ही फांसी है किन्तु (अधर्म) ॐ मिथ्याधर्म (अनंतयं) अनंत जन्मोंकी (पासि) फांसी है । इसके कारण (दुष्टं च) महान दोषपूर्ण (जन्म जन्म च ) जन्म जन्ममें (दुःखदारुणं ) भयानक दुःख (प्रापितं ) प्राप्त होते हैं। विशेषार्थ-यदि कोई शिकारी अपना जाल डाले तो उसमें पक्षी या पशु फंस जावे या मरकर ४ * प्राण गमावें, ऐसा शिकारीका जाल प्राणीको एक जन्ममें ही दुःख देता है। परन्तु कुगुरु द्वारा या ४ मिथ्या उपदेशक द्वारा दिखाया हुआ अधर्मका जाल ऐसा दोषप्रद है कि जिससे अनन्त जन्मों में खोटे खोटे अशुभ भव प्राप्त होते हैं। उनमें जो जो दुःख प्राप्त होते हैं उनका वर्णन मुखसे हो नहीं सक्ता है। इससे विवेकवान प्राणीको उचित है कि धर्मको परीक्षा करके ग्रहण करे या किसी परीक्षावान विश्वासपात्रकी आज्ञानुसार धर्मको पाले। जिससे संसारसमुद्रसे तिरना होसके वही तीर्थ है, वही धर्म है। वह धर्मरूपी जहाज रागदोष रूपी छिद्रोंसे रहित होना चाहिये। पूर्ण वीतरागता. रूपी अभेदपना उसमें होना चाहिये तब ही तो वह जहाज मोक्षदीपमें लेजायगा। राग द्वेषके छिद्र सहित धर्मरूपी जहाज स्वयं डूबेगा व उसपर जानेवालोंको भी डुबोएगा। जहां वीतरागता है, अहिंसा है, आत्मानुभव है वहीं धर्म है। इसकी पोषक सब क्रियाएं धर्म हैं। राग द्वेष पोषक सब क्रियाएं अधर्म हैं, ज्ञानी ऐसा मानता है। सुभाषितरत्नसंदोहमें कहा है
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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