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________________ वारणतरण श्रावकाचार कंदमूलके दोष। कंदमूल-जो फल भूमिके भीतर फलकर गड़े हुए निकलते हैंव जड आदि व वृक्षका धड जो जड़से मिला हो सो सब कंदमूलमें हैं। जैसे आलू, सुरण, घुइयां, शकरकंदी, मूली, गाजर, अदरक आदि। इन सबमें यद्यपि त्रस जंतुका घात नहीं है परंतु अनंत एकेंद्रिय स्थावर जीवोंका घात होजाता है। यहां ग्रंथकर्ताने उनकी हिंसाका दोष त्रस हिंसाके समान गिनकर मांसके दोषोंमें मना किया है। पुरुषार्थसिन्धुपायमें श्री अमृतचन्द्राचार्य कहते हैं एकमपि प्रजिघांसुः निहन्त्यनन्तान्यतस्ततोऽवश्यम् । करणीयमशेषाणां परिहरणमनन्तकायानाम् ॥ १२ ॥ भावार्थ-जिस एकको घात करनेसे अनंत स्थावर जीवोंका घात होता है इसलिये अनन्तकायर वाली साधारण वनस्पतियोंको सर्व प्रकार त्याग कर देना चाहिये। कंदमूल प्रायः इस ही दोषमें है। अत: त्यागना ही उचित है। म 0000000 शाक क फूलका दोष। शाक-शाक भाजी पत्ती पत्तेवालीका भी यहां मना किया है उसमें भी साधारण वनस्पतिका ४ सम्बंध विशेष रहता है तथा प्रायः छोटे २ अस जीव भी बैठे रहते हैं। तथा फूलों में भी यही बात है इसी लिये दौलतरामजी कहते हैंपत्र फूल कन्दादि भलें जे, साधारण फल मूढ चले जे । ते नहिं जानो जैनी भाई, जीभलम्पटी दुर्गति जाई ॥१.३॥ इसी तरह और भी वे पदार्थ जिनमें सन्मूर्छन त्रस जंतु पैदा हो, खाना उचित नहीं है। उनको कुछ आगे कहते हैं सन्मुर्छन स जन्तु। ___ श्लोक-स्वादं विचलितं यस्य, सन्मूर्छन तस्य उच्यते । - ये नरा तस्य मुक्तं च, तिर्यश्चा: नर संति ते ॥ ११ ॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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