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________________ वारणतरण श्रावकाचा ॥११॥ वहीं पहुंचा देनी चाहिये। ऐसा छना जल दो घडी या ४८ मिनिट तक काममें लेना चाहिये। फिर वह छानने लायक होजाता है। पानी छाननेके सम्बन्ध में दौलतरामजी क्रियाकोषमें कहते हैं रंगे वस्त्र नहि छानो नीरा, पहरे वस्त्र न गालो वीरा ॥२४४॥ नाहिं पातरे कपड़े गालो, गाढ़े वस्त्र गालि अघ टालो । रेजा दिढ़ अँगुर छतीसा, लम्बा अर चौड़ा चौवीसा ॥२४॥ ताको दो पुड़ताकर छानो, याहि नातणाकी विधि जानो । जल छानत इक बूंदहिं धरती, मति डारहु भाषे महावरती ॥१४६॥ एक बूंदमें अगणित प्राणी, यह आज्ञा गावे जिनवाणी । गलना चिहुँटी धरि मत दावो, जीवदयाको जतन धरावो ॥२१॥ छाणे पानी बहुते भाई, मल गरणा धोवे चित लाई । जीवाणीको जतन करौ तुम, सावधान हौ विनवे क्या हम ॥२८॥ राखहु जलकी किरिया सुद्धा, तब श्रावक व्रत लहो प्रबुद्धा । जा निवाणकी त्यावो वारी, ताही ठौर निवाणी डारी ॥२९॥ द्वै घटिका वीते जो जाको, अनछानाको दोष जु ताको । तिक्त कसाय भेलि किये फासु, ताहि अचित्त कहें श्रुत भासू ॥२५॥ पहर दोय बाजे जो भाई, अगणित त्रस श्रीवा उपजाई । ज्योढ तथा पौने दो पहरा, आगे मति वरतो बुधि गहरा ॥१५॥ भात उकाल उष्ण जल जो है, सात पहर ही लीनू सो है। बीते वसूजाम जल उष्णा, बस मरिया इह है जु विष्णा ॥२५॥ भावार्थ-गाढेका नया छन्ना कमसेकम ३६ अंगुल लम्बा व २४ अंगुल चौडा लेकर दोहरा करके जल छाने। छानकर छने पानीसे जीवानी एकत्र करके यातो उसी समय या फिर पानी भरते समय वर्तन में डालकर कूपमें पहुंचादे । यह पानी दो घडी चलता है। यदि कषायला द्रव्य लोग, इलायची, निमक, मिर्च आदि डालकर प्राशुक किया जाय तो छः घंटेके भीतर२ वर्त लेवे फिर त्रस जंतु वैदा होजायंगे । यदि औटाले तो ८ पहर या २४ घंटे पानी चलेगा उसके भीतर वर्तले, फिर प्रस जंतु वैदा होजायंगे । मात्र उकाला नहीं परंतु खूब उष्ण हो तो शामतक चल सका है ऐसा प्रसिद्ध है। भावककी क्रियामें छना पानी अति आवश्यक है। मर्यादाके भीतरका पानी नहीं पीनेसे बहु बस धातका दोष होता है। यदि वर्तनका मुंह बड़ा हो तो दोहरा करनेपर वर्तनके मुंहसे तीनगुणा कपड़ा होना चाहिये । जिससे अनछना जल वर्तनमें न पड़े। दयावानोंको तो स्नान भी पानी छानकर करना चाहिये। पानीके छाननेसे अपने शरीरकी भी रक्षा होती है। बहुतसे महीन जंतु रोगोंको पैदा कर देते हैं। जिस तालाव या कूएका पानी वर्तावमें नहीं आता है उसको छानकर औटाकर ही पीना उचित है जिससे शरीरमें रोग न हो।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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