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सारणतरण
१.९॥
डभिज्मा जत्थ जणो पिज्जा मज च जत्थ बडुदोसं । इच्छंति सो वि धम्मो केइ य अण्णाणिणो पुरिसा ॥१॥ जह एरिसो वि धम्मो तो पुण सो केरिसो हवे पावो । जइ एरिसेण सम्गो तो णरय गम्मएं केण ॥१८॥
जो एरिसय धम्म किज्जइ इच्छेह सोक्ख अँजेऊ । वावित्ता णिवतरूं सो इच्छंह संवफल्लाइं ॥ १९ ॥ ___ भावार्थ-जिस धर्ममें पशुओंका व मानवोंका व अन्य जंतुओंका वध हो, जहां मृषा कटुक हास्यादि वचन कहा जाय, जहां परद्रव्यको हरण किया जाय व परस्त्रीका सेवन किया जाय, जहां ॐ बहुत आरम्भ व परिग्रहकी वृद्धि हो, जहां सन्तोषका नाश हो, जहां मधु व मांस खानेमें व पीपल,
वड, गूलर, पाकर, अंजीर ऐसे जंतु सहित फलोंके खाने में धर्म माना जावे, जहां मानवोंको ठगा १ जावे, जहां मदिरा पीनेमें धर्म माना जावे, वहां अज्ञानी पुरुष ही धर्म मानते हैं। जो यह सब
भी धर्म होजावे तो पाप किसको कहना । जो ऐसे धर्मसे स्वर्ग जावे तो नरकमें किससे जायगा ! जो ऐसे धर्म करके सुख चाहते हैं वे नीमका वृक्ष बोकर आमफल खाना चाहते हैं।
चार विकथाका स्वरूप। श्लोक-विकहा राग सम्बन्धं, विषय कषायं सदा ।
___ अनृतं राग आनन्द, धर्मश्चाधर्ममुच्यते ॥ ९६ ॥ अन्वयार्थ (धर्म च) जो धर्म (विकहा राग सम्बन्धं) विकथाओंके रागसे सम्बन्ध रखता है व (सदा) एइमेशा (विषय कषाय ) विषय व कषायको बढाता है ( अनृतं राग आनन्दं ) मिथ्यात्वके रागमें आनन्द मानता है सो ( अधर्म ) अधर्म ( उच्यते ) कहा जाता है।
विशेषार्थ-मोक्षमार्गसे विमुख करनेवाली व संसारके भ्रम जालमें फंसानेवाली कथाओंको विकथा कहते हैं। वे चार हैं-स्त्री कथा, भोजन कथा, देश कथा या चोर कथा तथा राजकथा । स्त्रियोंके हाव भाव विलास, लावण्य व उनके विषय भोगकी कथा जिसके सुननेसे काम भावकी तीव्रता बढ जावे सो स्त्री कथा है । आहारके रसोंकी मनोज्ञताकी कथा । कौन २ सा भोजन कैसा कैसा स्वाद युक्त होता है व किस तरह प्राप्त होता है या बनता है इसकी कथा इस तरह करना
॥१०॥